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औपपातिकमरे महया - हिमवंत-महंतमलय-मंदर-महिंदसारे अचंतविसुद्धदीह-रायकुल-वंस-सुप्पसूए णिरंतरं रायलक्षण-विराडयंगपञ्चंगे बहुजणवहुमाणपूइए सव्वगुणसमिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धा'कूणिए णाम राया परिसट' कृणिको नाम राजा परिवसति स्म, कूणिको भूप कीदृश । इयाह-'महयाहिमवत-महंतमलय-मदर-महिंदसारे' महाहिमवन्महामलयमन्दरमहेन्द्रसार महाहिमवन्महामलय-मन्दर-महेन्द्राणाम् एतनामौलाना सार
शक्तिरिव सारो यस्य स तथा। 'अञ्चतविसुद्ध-दीह-रायकुल-स-सुप्पमूए' अत्यन्तपिशुद्ध-दीर्घ-राजकुल-वा-सुप्रसूत अयन्तपिशुद्धौ सर्वातिगायिनिर्मलौ दार्थीअतिपुगतनौ यौ राजा कुलशौ-मातापितृवशी तन सु-मुटु प्रसूत =प्रादुर्भूत -समुत्पन्न इति यावत् , 'णिरतर' निरन्तरम्, 'रायलखण-विरायगपञ्चगे' राजलक्षणविराजिताङ्गप्रत्यग -राजलक्षणे = सामुद्रिकशास्त्रोक्तैर्विराजितमग-हस्तादिक प्रत्यङ्गम्अगुल्यादिक यस्य स तथा । 'बहुजणबहुमाणपूइए' बहुजनवहुमानपूजित - बहुभिर्जनैबहुमानरतिशयसत्कृत , ' सव्वगुणसमिद्धे सर्वगुणसमृद्ध -सर्वे =अशेपै गुणे = कूणिक नाम के राजा [ परिवसइ ] राज्य करते थे। ( महया-हिमवत-महतमलयमदर-महिंदसारे) यह महाहिमरत पर्वत, महामलय पर्वत, मेर पर्वत, और महेन्द्रपर्वत के तुल्य श्रेष्ठ थे। (अचतविसुद्ध-दीड-रायकुल-चस-मुप्पमूए ) अयत पिशुद्ध एव अतिप्राचीन मातापिता समधी कुल एच वशमे इनका जन्म हुआ था। (णिरतर-रायलक्खण-विराइयगपञ्चगे)असडित राजचिह्नों से इनके अग एव उपाग मुशोभित थे। (बहुजणवहुमाणपूइए) अनेकजनों द्वारा ये बहुमानपूर्वक सत्कृत होते रहते थे। ( सच्चगुणसमिद्धे ) अनेक नीति, दया एव दाक्षिण्याटिक सद्गुणों से समृद्ध थे। ( मुइये ) ये सदा प्रसन
नामै २ (परिवसइ) २०य ४२०॥ ता (मह्या-हिमवत-महत-मलय-मदरमहि द-सारे) मे भाडिभपत पर्वत, महाभलय पति, भे३ पर्वत, मने भाईपर्वतारम २४ ता (अच्चत विसुद्ध दीह रायकुल बस सुप्पसूए) सत्यत વિશુદ્ધ તેમજ અતિ પ્રાચીન માતાપિતા સ બ ધી કુળ તેમજ ५शमा भनी म थयो त (णिग्तर-राय लक्रमण विराइयगपञ्चगे)
पति शिनाथी तमना २५ सभा 64131 सुशालित ! (बहुजणबहमाण-पूइए) मने Ratan ते मान पूर्व म१२ यामत त (सव्वगुणसमिद्धे) मने नीति तेभ क्षिय माहि साथी पधारे