Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 798
________________ - पीयूषयपिणी-टोका ८८ फेयलिसमुद्घातविषये भगवद्गीतमयो मयाद ६८९ मोसवइजोगं जुजइ १ सञ्चामोसवइजोगं जुजइ ? असचामोसवइजोगं जुजइ ? सच्चवडजोगं गँजड, णो मोसबइजोगं मुंजइ, णो सच्चामोसवइजोगं जुंजइ,असच्चामोसवडजोगं पि जुंजइ॥सू०८८॥ ___ मृलम्-~- कायजोगं जुजमाणे आगच्छेज वा चिट्टेन ग्योगयुङ्क्ते 'सच्चामोसबइजोग जुजई' सत्यमृपावाग्योग युक्ते "असच्चामोसवइजोग जुज' अस याऽमृपाराग्योग युङ्क्ते किम् । भगवानाह-'गोयमा सचडजोग मुंजड ?' गौतम ! सयवाग्योग युक्ते, 'यो मोसवइजोग जुंजई नो मृपावाग्योग युक्ते, णो सच्चामोसवइजोग जुजट'नो सत्यमृपाचाग्योग युक्ते, असञ्चामोसवइजोगं पि जुजइ' असयाऽमृषावाग्योगमपि युक्ते ॥ सू० ८८ ॥ टीका-'कायजोग' इत्यादि । 'कायजोग जुजमाणे आगच्छेज वा चिट्ठज्ज वा' काययोग युञ्जान आगच्छति वा तिष्ठति वा, 'गिसीएज वा निपीदति-उपविशति या, योग को प्रयुक्त करते हैं, अथवा मिश्रवचनयोग को प्रयुक्त करते है, या असल्यामृपावचनयोग को प्रयुक्त करते है ? उत्तर-(गोयमा) है गौतम । (सच्चाइजोग जुजइ) वे केली स यवचनयोग को प्रयुक्त करते है, (गो मोसवइजोग जुजइ णो सच्चामोसवडजोग जुजइ) असत्यवचनयोग को एव मिश्रवचनयोग को प्रयुक्त नहीं करते है । (असचामोसवहजोगपि जुजइ) परन्तु असत्यामृपावचनयोग को प्रयुक्त करते है। चार वचनयोगों मे से केवली के सत्यवचनयोग एव असत्यामृपावचनयोग दो ही वचनयोग होते है, बाक के दो नहीं ।। सू० ८८ ॥ सबइजोग जुजइ, असचामोसवइजोग जुजइ) सत्यपयनयोगने प्रयुत ४२ छ, અથવા અસત્યવચનયોગને પ્રયુકત કરે છે, અથવા મિશ્રવચનગને પ્રયુકત કરે छ, अथवा सत्याभूषापयनयोगने प्रयुत ४२ छ ? उत्तर-~-( गोयमा !) उ गौतम । (सन्चवइजोग जुजइ) ते पक्षी सत्यपयनयाने प्रयुक्त ४२ छ (णो मोसवइजोग जुजइ णो सन्चामोसवइजोग जुजइ ) सत्यपयनयोगने तमा भिपयनयाने प्रयुत ४२ता नथी, ( अमच्चामोसवइजोगपि जुजइ) परन्तु એ ત્યામૃષાવચનગને પ્રયુક્ત કરે છે. ચાર વચનોમાથી કેવલીના સત્યવચનગ તેમજ અસત્યામૃષાવચનયોગ બે જ માત્ર વચનગ હોય છે माडी नडि (सू ६८)

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