Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 829
________________ মাথমিক मुलम्-ईसीपभराए णं पुढवीए सेयाए जोयणमि लोगंते । तस्स जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए, तस्स णं गाउयस्स जे से उवरिल्ले छब्भागे, तत्थ पंसिद्धा भगवंतो सादिया कमनीया, 'पडिरूया' प्रतिरूपा-दर्शने प्रतिक्षण नव नवमिव प्रतिभासमान रूप यस्या सा तथा ॥ सू० १०५ ॥ टीका-'ईसीपन्भाराए' इत्यादि । 'ईसीपम्भराए णं' ईपत्प्राग्भाराया सिद्धशिलाया खल 'पुढवीए सेयाए' पृथिव्या श्वेताया 'जोयणमि लोगते' योजने लोकान्त = योजनपरिमित क्षेत्रमुपरि गत्वा लोकान्तो वर्त्तते । अत्र योजनम्-उत्सेधागुलयोजन ग्राह्यम्, तदीयस्यैव हि क्रोशषड्भागस्य सनिभागमयस्त्रिंशदधिकधनु शतायीप्रमाणत्वादिति । 'तस्स जोयणस्स' तस्य योजनस्य, 'जे से' य स 'उवरिले' उपरितन 'गाउए' देशीयोऽय शब्द क्रोशाथै, स च द्विसहस्रधनु प्रमाण क्षेत्रम् , उक्त च-" चउहत्य पुण धनुह दुनि सहस्साइ गाउय तेर्सि" ॥ इति । 'तस्स ण' तस्य सल 'गाउयस्स' क्रोगस्य, 'जे से उवरिल्ले' य स उपरितन 'छन्माए' पड्माग-पठो भाग , 'तत्यण सिद्धाभगवतो इसे देखने वालों के नेत्र इसे देखते २ यकते नहीं है। यह बडी ही कमनीय है। इसे ज्यों न्यों देसा जाता है त्यो २ यह नवीनर जैसी प्रतीत होती है ।। मू० १०५॥ 'ईसीपब्भाराए ण पुढवीए' इत्यादि । इस (ईसीपभाराए ण पुढवीए सेयाए)शुभ्र ईप'प्राग्भारा पृथिवी से (जोयणमि) ऊपर १ योजन मे (लोगते) लोक का अत है । (तस्स जोयणस्स जे से उवरिले गाउए, तस्स ण गाउयस्स जे से उवरिले छ-भागे, तत्थ ण सिद्धा भगवतो सादिया अपजवसिया) उस योजनपरिमित लोक के अत में ३३३ धनुष और ३२ अगुल जितनी जगह रही है, उसमे अर्थात उस योजन के ऊपर के कोस के छठवे भाग में सिद्ध भगवान् બહુ જ કમનીય છે, તેને જેમ જેમ જેવાય તેમ તેમ તે નવીન નવીન જેવી પ્રતીત થાય છે (સૂ૦ ૧૦૫). 'ईसीपम्भाराए ण पुढवीए'त्यादि मा (ईसीपभाराए ण मुढवीए सेयाए ) शुभ्र धपामा पृथिवीथी (जोयणमि) 6५२ १ मा (लोगते) नो मत छ (तस्स जोयणस्स जे से उरिल्ले गाउए, तस्स ण गाउयस्म जे से उवरिल्ले उम्भागे, तत्थ ण मिता भगवतो सादिया अपजवसिया चिट्ठति) योजनपरिमित all આતમા ૩૩૩ ધનુષ અને ૩૨ આગળ જેટલી જગા રહી છે, તેમાં અર્થાત્,

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