Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 840
________________ - पीयूपषिणी-टीका शाखोपमहार मूलम्-~ण वि अस्थि माणुसाणं,तंसोक्खंणवि य सव्वदेवाणं। जंसिद्धाणं सोक्खं,अव्वावाहं उवगयाणं ॥सू०११९ ॥ ज्ञानोपयुक्ता सन्तस्ते सिद्धा 'सन्चभावगुणभावे' सर्वभारगुणभावान् समस्तवस्तुगुगपर्यायान 'जाणति' जानन्ति, तत्र-गुणा-सवर्तिन , पर्यागस्तु-क्रमवर्तिन इति । तथा पताही अनन्ताभि 'केवलदिद्वीहि करलदृष्टिमि , अनन्तै कालबर्गनेरियर्थ , 'सबी ' सर्वत सनभानान् ग्वाल-निश्रयेन 'पासति' पश्यन्ति ॥ मू० ११७ ॥ टीका--सिद्वाना मुग्यवर्णयति-जवि दयादि । 'अन्यावाह' अन्याआधसकल दुखार्जित मोजस्थानम् 'उवगयाण' उपगताना-प्रामाना, 'सिद्धाणं' सिद्धानाम 'ज यत 'मोश' मौन्यम 'जत्यि' अस्ति, 'त' तत् 'साम्य' सौरय 'ण विमाणुसाण' नाप मनुष्याणामस्ति, 'ण वि य सचदेवाण' नापि च सर्वदेवानाम् ।। सू० ११९ ॥ है। (पासति सभी ग्वलु केवलदिट्ठीहि णताहि) अनतकेवलदृष्टिस्वरूप अनतदर्शन से युक्त वे सिद्ध भगवान् , युगपत् समस्त भावो को उनकी गुणपर्याया सहित टखते है । वस्तु में _त्रिकाल उसके साथ रहन वाले गुण होते है । एव कमवर्ती पर्याय होती है ।। म ११७ ॥ 'वि अत्यि' इत्यादि । (ज सिद्धाण सोय अबानाह उवगयाण) सकल दुम्यो स वर्जिन एसे मोक्षस्थान म प्राम हुए मिद्धा को जो सुस है, (ण वि अत्थिमाणुसाण त सोक्त्रंण वि य सचदेवाण) वह मुग्य बलोक्य म न तो मनुष्य को है, और न सर्व देवों को है ॥ सू ११९ ॥ યુક્ત તે સિદ્ધ ભગવાન સમસ્ત વસ્તુઓના અનતગુણ, તેમજ તેમની અનત पर्यायाने अडीमाये तो छ (पासति सचओ सलु केवलन्ट्रिीहि णताहि) અાત કેવળદષ્ટિસ્વરૂપ અને તદર્શનથી યુક્ત તે સિદ્ધ ભગવાન એકીસાથે સમસ્ત ભાવોને તેમની ગુણ--પર્યા–સહિત જુએ છે વસ્તુમાં ત્રિકાળ તેની સાથે રહેવાવાળા ગુણ હોય છે, તેમજ કમવતી પર્યાય હોય છે ( ૧૧૮) 'रि अस्थि' त्या (ज सिद्धाण मोक्स अव्वाचाह गयाण) माथी पति मेवा भाक्ष यान प्रास रेसा मिद्धोने रे सुम छ, रण वि अस्थि माणुसाण त सोर ण वि य सव्वदेवाण) ते सुमन सोमाय नथी अ मनुष्यने કે નથી સર્વ દેને હેતુ (સૂ ૧૧૯).

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