Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 846
________________ पीयूषयपिणो-टीका शाम्रोपसहार ७३३ किंचि विसेसेणेत्तो,ओवम्ममिणं सुणह वोच्छं। सू० १२३ ॥ मूलम्-जह सबकामगुणियं, पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई। तण्हाइहाविमुक्को, अच्छेज जहा अमियतित्तो॥ सू० १२४ ॥ नास्ति, तथापि नालाना गोगार्थमाह-किंचि' उयादि । 'किंचि विमेमेण' किनिद्रिशेषेण 'एत्तो' इत मत पग्म् 'ओवम्म' औपम्यम्-उपमानम् 'इण' इट वक्ष्यमाण 'सृणह' शृणुत, 'चोर' वक्ये-अह कथयिष्यामीयर्थ ।। स १२३ ॥ टीका--'जह' इत्यादि । 'जह' यथा 'कोई पुरिसो' कोऽपि पुस्प , 'सबकामगुणिय' सर्वकामगुणित-माभिलपणीयग्मादिमपन्न, 'भोयण' भाजनम अनादिकम्, 'भोत्तूण' मुक् वा, 'तण्डाहाविमुको तृष्णाक्षुपाविमुक्त =पिपासावुमुक्षारहित 'अमि 'य सिद्धाण सोकव' दयादि । (व्य सिद्धाणं सोश्व ) इसी प्रकार सिद्धों का मुस यधपि (जगोवम) अनुपम है, अन (णत्यि तस्स ओवम्म ) उमको किसा मी मामारिक पदार्थ के साथ उपमा नहीं दी जा सकता है, तो भी (किंचि विसेमेणेता औवम्ममिण मुणह बान्छ ) बालजीवा को बोपन करने के लिये कुछ विशेपरीति से सिद्धा क दम मुम्ब को उपमा देकर समझाया जाता है । म १२३ ॥ 'जह मन्चकामगुणियं' दयादि । (जह सबकामणिय पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई ) कोई पुस्प पाचा टन्द्रिया को तृप्त करनाडे काम-मट, प, और भोग-गर,ग्म, स्पर्दा आदि विषयों को ययेराति से भोगकर ( तण्डाहाविमुक्को) पिपामा एव बुभुक्षा स रहित (अमियतित्तो 'डर सिद्धाण मोक्ख' ल्यादि (इय सिद्धाण मोक्ख) २ डा मिद्धोनु सुप ले (अगोवम ) मनुपम , तथा (णयि तस्स ओनम्म) तेनी ५ ६ पy सारिस पहाना सुमनी माथे मापी जाती नया तो पर (किंचि विसेसणेत्तो ओगम्ममिण मुणह बोन्छ) पासवाने साधन ३२वा माटे ४६६ विशेष રીતથી સિદ્ધોના આ સુખની ઉપમા દઈને સમજાવવામાં આવે છે (૧૨૩) 'जह सध्यामगुणिय' त्या (जह मन्चकामगुणिय पुरिसो भोत्तृण भोयण कोई) भ y५ પાચેય ઈઓને તૃપ્ત કરવા વાળા કામ-શદ, ૩૫, અને ભગગધ, રસ, સ્પર્શ m

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