Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 839
________________ ६२६ आपपातिकमत्रे मूलम्---असरीरा जीवघणा, उवउत्ता दंसणे य णाणे य। सागारमणागारं, लक्खणमेयं तु सिन्हाणं । सू० ११७ ॥ मुटम् केवलणाणुवउत्ता, जाणंति सवभावगुणभावे । पासंति सव्वओ खल, केवलदिट्टीहि णताहि ॥ सू० ११८॥ टीका'असरीरा' इत्यादि। अगरीरा जीवधना उपयुक्ता दर्शने च जाने च । साकारमनाकार रक्षणमेतत्तु सिद्धानाम् ॥ एतेषा पदाना व्यारयाऽस्यैनागमस्य उत्तरार्दै त्रिसप्ततितमसध्याके मने पूर्वमुक्ता ॥ सू ११७ ॥ टीका-यदुक्तम्-'उवउत्ता दसणे य णाणे य इति, तर ज्ञानदर्शनयो सर्वविपयतामुपदर्शयन्नाह-'केवलणाणुरउत्ता' इत्यादि । 'केरलणाणु उत्ता' केरल 'असरीरा जीवरणा' इत्यादि। (अमरीरा जीवघणा उपउत्ता दसणे य णाणे य) सिद्धो का लक्षणनिर्देश इस सूत्र में कहा गया है । औदारिक आदि शरीर से रहित एव धनरूप आमप्रदेशवाले व सिद्ध भगवान् केवलजान एव केवलदर्शन से सदा उपयुक्त है। (सागारमणागार) केवल जान की अपेक्षा वे साकार उपयोग से युक्त है, एच केवल दर्शन की अपेक्षा निराकारस्वरूप दर्शन से युक्त हैं। (लक्खणमेय तु सिद्धाण) यही सिद्धों का लक्षण है। स ११७ ।। 'केवलणाणुउत्ता' इत्यादि। (केवलाणाणुवउत्ता जाणति सम्वभावगुणभावे) केवलज्ञानरूप उपयोग से युक्त वे सिद्ध भगवान् समस्त वस्तुओं के अनतगुण, एव उनकी अनतपर्यायों को युगपत् जानते 'असरीरा जीवघणा' त्याहि (असरीरा जीवघणा उवउत्ता टसणे य णाणे य) सिद्धाना क्षयना निश આ સૂત્રમાં કહેવામાં આવ્યો છે ઔદારિક આદિ શરીરથી રહિત તેમજ ઘનરૂપ આત્મપ્રદેશવાળા તે સિદ્ધ ભગવાન કેવળજ્ઞાન તેમજ કેવળદર્શનથી सह! उपयु४ छ ( सागारमणागार) शाननी अपेक्षा तेरा सार ઉપયોગથી યુક્ત છે, તેમજ કેવળદનની અપેક્ષાએ નિરાકાર સ્વરૂપ દર્શનથી यात (लपसणमेय तु सिद्वाण ) मा सिद्धाना सक्ष! छे (१ ११७) 'केवलणाणुवउत्ता' त्या ( केवलणाणुवउत्ता जाणति सव्वभावगुणभावे) शान३५ उपयोगी

Loading...

Page Navigation
1 ... 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868