Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 833
________________ औपपातिक मूलम् - तिणि सया तेत्तीसा, धणुत्तिभागो य होइ वोद्धव्वो । एसा खलु सिद्धाणं, उक्को सोगाहणा भणिया ॥ सू० १११ ॥ ७१० हूस्व हस्तद्वयमान वा, या शब्दान्मध्यमं चापि माय 'ज चरिमभवे सठाणं हवेज' यचरमभवे सस्थान भवेत् ' तत्तो तत =तस्मात्, 'तिभागहीण' विभागहीन = विभागेन-तृतीयभागेन रन्ध्रपूरणात् विभागहीन यथा स्यात्तथा 'सिद्धाणोगाहणा' सिद्धानामवगाहना 'भणिया' भणिता = कथिता जिनैरिति शेष ॥ सू ११० ॥ टीका- 'तिणि' इत्यादि । 'विष्णि सया तेत्तीसा' त्रीणि शतानि त्रयत्रिशब्दपि, तथा 'धणुत्तिभागो य' धनुखि भागश्च धनुप = एकम्य धनुपविभाग =तृतीयो भाग - द्वात्रिंशदङ्गुलानि तेन त्रयत्रिंशदधिकशतत्रय- ३३३ धनृषि द्वार्निंगदद्गुलानि चेयर्थ, अय सिद्धानामुत्कर्षतोऽवगाहनाप्रमाणो 'गोद्धव्यो' बोद्धव्यो जातत्र्यो भवति । अमुमेवार्थमाह- 'एसा खल सिद्धाण उक्कोसोगाहणा भणिया' एषा खलु सिद्धानाम् उत्कर्षाऽवगाहना भणितेति । इयमवगाहना पञ्चधनुश्शतप्रमाणशरीराणा भरतीति बोध्यम् ॥ सू० १११ ॥ का हो, अथवा मध्य - अवगाहना के विकल्पों वाला हो, (ज चरिमभवे हवेज्ज संठाण) अन्तिम भव-समय में जैसी अवगाहनावाला शरीर होगा, (तत्तो विभागहीण सिद्वाणोगाहणा भणिया) उससे तृतीय भाग-हीन अवगाहना सिद्धों की सिद्धिगति में होती है ॥ ११० ॥ 'तिष्णि सया तेत्तीसा' इत्यादि । (तिणि सया तेत्तीसा) तीन सौ तैंतीस धनुप, तथा ( धणुत्तिभागो य होइ atrait) एक धनुष का तीसरा भाग, अर्थात् ३२ अगुल, (एसा खलु सिद्धाण उक्कोसोगाहणा भणिया ) इतनी उत्कृष्ट अवगाहना सिद्ध भगवान् की जानना चाहिये । यह अवगाहना, जिनका शरीर ५०० धनुष का होता है उनकी अपेक्षा कही गई है ।। सू. १११ ॥ ચાહે હ્રસ્વ-ટુકુર હાથનુ હોય, અથવા મધ્ય અવગાહનાના વિકલ્પોવાળુ हाथ, (ज चरिमभवे हवेज्ज सठाण) अंतिम लव-समयमा नेवी अवगाहना वाणु शरीर हशे ( तत्तो विभागहीण सिद्धाणोगाहणा भणिया ) तेनाथी श्रीक्त ભાગની આછી અવગાહના સિદ્ધોની સિદ્ધિગતિમા હેાય છે (સ ૧૧૦) 'तिणिसया तेतीसा' इत्याहि (तिष्णि सया तेत्तीसा) घुसे। तेन्रीस धनुष, तथा (वणुत्तिभागो य होइ बोद्धव्वो) ४ धनुषने। त्रीले लागू, अर्थात् ३२ भागण, (एसा मल सिद्धाण Gratineer भणिया) भेटसी सूष्ट अवशाना सिद्ध भगवाननी लखुनी

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