Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 800
________________ पीयूषयषिणी-टीका स ९० येयलिममुद्घातविषये भगवद्गीतमयो' सयाद ६९१ मूलम्-~-से णं भंते! तहा सजोगी सिझड़ जाव अंतं करेइ ? णो इणडे समहे ॥ सू० ९० ॥ मूलम्- से णं पुवामेव सपिणस्स पंचिंदियस्स पज टीकापौतम पृष्ठनि-'से ण भंते " हयादि । 'से णं भते 'तहासजोगी' स खल भदन्त । तथा सयोगी 'सिज्मइ सि यति किम् 'जाव' यावत् 'सबदुक्खाणमतं करेई सर्वदु खानामन्त करोनि किम् ? । भगानाह-'यो इणढे सम?' नाऽयमर्थ समर्थ ॥ सू० ९० ॥ टीका--'से णं पुन्चामेव' इत्यादि । 'मे ण' स केवली खल 'पुवामेत्र पूर्वमेव योगनिरोरावस्थाया आदावेच 'संण्णिस्स पचिदियम्स' सजिन पञ्चेन्द्रियस्य, अत्र पञ्चेन्द्रियस्येति विशेषण मजिस्वरूपप्रदर्शनार्थ, पञ्चेन्द्रियस्यैव मनिवात् , 'पजत्तगस्स' पयाप्तकस्यमन पर्याप्या पर्यापस्येत्यय , अन्यपर्यापस्य मनसोऽभावात् । स च मध्यमादिमनोयोगोऽपि 'सेज भते !' इत्यादि। (भते ! ) हे भदन । (मे वहा सजोगी) वे केला ऐसी सयोगी अवस्था में रहते हुए (सिज्झइ जाव अत करेड) सिद्ध, बुद्ध, मुक्त एव परिनिर्माण हो समस्त दुखों का अन्त करते हैं क्या ? उत्तर-ह गौतम ! (णो इणद्वे समढे) यह अर्थ समर्थित नहीं है । अर्थात सयोगिकेवली कर्मों का अन्त नहीं करते ! ॥ सू० ९० ।। ___ 'से ण पुन्बामेव' इत्यादि। (से ण) ये सयोगी काली भगवान् (पुन्नामेव) पहिले (सपियस पचिदियस्स पजत्तगस्स) मजी पचेन्द्रिय पर्यातक के (जहण्णजोगस्स हेढा) जघन्यमनोयोग से भी नीचे 'से ण भते ।' त्या (भते । ) & Mrt ! (से तहा सजोगी) ते पसी मेवी सी -244 स्थामा रहेता (मिज्झइ जार अत करेइ) सिद्ध, शुद्ध, भुत, तेभ परिनिपाय / भन्तपने भुमत ४२ छ ? उत्तर- गौतम। (णो इणद्वे सम8) मा अर्थ समर्थित नथी, मर्यात सय वटी भाना मत ४स्ता नथी (सू. ८०) “से ण पुवामेव " त्यात (से ण) ते सयाजी उपटी मसान् (पुवामेव) पक्षा (सण्णिस्स पचिंदियस्स पज्जत्तगस्स) सही पयेन्द्रिय पर्यातजना (जहणजोगरस हेढा)

Loading...

Page Navigation
1 ... 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868