Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 808
________________ Pawan MA m पीयूषयषिणी-टोकास ९२ फेवलिन सिद्धिगतिप्राप्तिक्रमनिरूपणम् ६९७ यतेयकम्माई सव्वाहि विप्पजहणाहिं विप्पजहइ, विप्पजहिता उज्जुसेढीपडिवणे अफुसमाणगई उड्ढं एकसमएणं अविग्गहेण गंता सागारोवउत्ते सिज्झइ ॥ स० ९२ ॥ युगपत् क्षपयतीति । सविता 'क्षपयित्वा 'ओरालियतेयकम्माई। औदारिकतैजसकर्माणि सचाहिं । सर्वाभि अशेषामि , 'विप्पजहणाहिं विप्रहाणिभि --विशेषेण अकर्पतो हानय म्यागास्ताभि , अत्र व्यक्त्यपेक्षया बहुवचनम , विपजहइ विप्रजहाति सर्वथा परिशाटयति, 'विपनहिता' विग्रहायपरियज्य, 'उज्जुसेढीपडिवण्णे उजुश्रेणिप्रतिपन्न -ऋजु = अवका, श्रेगि आकागप्रदेशपक्तिस्तामाश्रित 'अफुसमाणगई अस्पृशद्गति -अस्पृशन्ती सिद्धयन्तरालप्रदेशान् गतिर्यस्य स तथा, 'एक्कसमएण' एकसमयेन, अन्तरालप्रदेशस्पर्शने हि नैकेन समयेन सिद्धि स्यात्, इप्यते तु तत्रैक एव समय , य एव चायुष्कादिकर्मणा क्षयसमय स एव निर्वागसमय । अतोऽन्तराले समयान्तरस्यासद्भावादन्तरालप्रदेशानामसम्पर्शन भवति । भावतोऽय सूदमोऽर्थ केवलिगम्य । 'अविग्गहेण ' अधिग्रहण अपकेगा एव हि समयान्तर लगति प्रदेशान्तर च स्पृशति । 'उड्द' ऊ गंता' गवा 'सागारोवउत्ते' साकारोपयुक्त ज्ञानोपयोगवान्, 'मिअइ' सिद्वयति सिद्धो भवति ।। सू० ९२ ॥ णाहि विपनहइ ) भपण करने के बाद औदारिक, तैजस एव कार्मण इन शरीरोको विशिष्टरूप से समन्त हानियों द्वारा सर्वथा छोड़ देते है। (विप्पजहिता उज्जुसेठीपडिवण्णे अफुसमाणगई अड्ढ एकसमएण अविग्गहेण गता सागारोवउत्ते सियड ) छोड़ने के बाद मजु-अवरु आफागके प्रदेशोकी पंक्तिस्वरूप श्रेणीको आश्रित करते हुए, अर्थात् श्रेणी के अनुसार सिद्धिके अन्तराल के प्रदेशाको नहीं म्पर्शते वे केवली भगवान एक समय में विग्रहरहित गति से-सीधी गति से होकर सिद्धगति में विराजमान हो जाते है। यहा उनका उपयोग साकार होता है, अर्थात् ज्ञानोपयोग से वे विशिष्ट रहते है। કર્યા પછી ઔદારિક, તૈજસ તેમજ કાર્મણ એ શરીને વિશિષ્ટરૂપથી सण सानिया द्वारा सर्वथा छोडी वीमे छे. (विप्पजहित्ता उन्जुसेढीपडिवण्णे अफुसमाणगई उड्ढ एकसमरण अविग्गहेण गता सागारोवउत्ते सिम्झइ) છોડી દીધા પછી આજુ-અવકે આકાશના પ્રદેશની પક્તિસ્વરૂપ શ્રેણીને આશ્રિત કા, અર્થાત શ્રેણીને અનુસાર સિદ્ધિના તરાલ પ્રદેશોને સ્પર્શ ન કરતા તે કેવલી ભગવાન એક સમયમાં વિગ્રહહિત ગતિથી-મીઠી ગતિથી થઈને સિદ્ધિગતિમાં વિરાજમાન થઈ જાય છે. અહીં તેમને ઉપયોગ સાકાર હોય

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