Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 826
________________ ७१५ ma पीयूषयषिणो दो स १०५, पत्माग्माराया स्त्ररूपयर्णनम् लण्हा घट्ठा महा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिकंकडच्छाया समरीचिया सुप्पभा पासादीया दरिणिजा अभिरुवा पडिरूवा ॥ सू० १०५॥ मुवष्णयमई' सर्वार्जुनसुवर्णकमयी-सर्वेण सर्वावयवावच्छेदेन अर्जुनसुवर्णकमयी श्वेतकाञ्चनमयी, तथा-'अच्छा' अच्छा आकाशस्फटिकवत् , 'सण्हा' श्लदणा-शुमपरमाणुस्कन्धरचिततया ग्लक्ष्णा मूलमतन्तुनिर्मितरसवत् भूक्ष्मा, 'लहा' ग्लणा-घुण्टितवस्त्रवन्ममृणा, 'लट्ठा' लप्टा सुन्दराकृतिका, 'घट्ठा' घृष्टाधृष्टेव-स्वरगाणया शोधितपाषाणवत्, 'महा' मृष्टा-मुष्टेव-कोमलगाणया शोधितपाषाणवत्, 'जीरया' नीरजा , 'हिम्मला' निर्मला, गणप्पका' निप्पदा कर्दमरहिता 'णिककडन्छाया' निकटच्छाया आवरणरहिता 'समरीचिया' समरीचिका-क्रिग्णसमूहयुक्ता, 'मुप्पभा' सुप्रभागोमासम्पन्ना, 'पासाईया' प्रासादीया-प्रसाद प्रमोद स एव प्रासाद , स प्रयोजन यस्या सा तथा, 'दरिसणिज्जा' दर्शनीया-दर्शनाय हिता, ता पश्यच्चक्षुर्न श्राम्यतीयर्थ, 'अभिरुवा' अभिरूपाअच्छा सहालण्हाघट्ठामटठा जीरया णि मला णिप्पका णिककडच्छाया समरीचिया सुप्पभा पासादीया, दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिस्त्रा) तथा यह सपूर्ण श्वेतकाचनमय है, आकाश एव स्फटिक के समान स्वच्छ है, शुद्धपरमाणुस्कन्धों से रचित होन के कारण सूक्ष्मतन्तुओं से निर्मित वस्त्र के समान सूक्ष्म है, घुटे हुए वस्त्र के समान चिकनी है, घृष्ट है-नवर शाण से घिसे हुए पत्थर के जैसी है, मृष्ट है, अर्थात्-कोमलाण से घिसे हुए पत्थर के समान चिकनी है। नीरज-निर्मल है। कर्दमरहित है। आवरणरहित है। किरणों के समुदाय से सुरम्य है। शोभासे संपन्न है। प्रमोद प्रदान करने वाली है । दर्शनीय है। सुरण्णयमई अच्छा सहा लण्हा घटा मटा णीरया णिम्मला णिपंका णिकंकडच्छाया समरीचिया सुप्पभा पासाठीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिस्वा) तथा એ સપૂર્ણ વેત વાચનમય છે, આકાશ તેમજ ટિકના સમાન સ્વછ છે શુદ્ધ પરમાણુ થી નિમિત હોવાને કારણે સૂકમત તુઓથી નિર્મિત વસ્ત્ર સમાન સૂક્ષમ છે, ઘટિત–માડ વિગેરેથી ઘસાયેલા વરની માફક ચીકણી છે, ઘટે છે–ખરશાણથી ઘસાયેલા પથરના જેવી છે, મુષ્ટ છે–અર્થાત કેમળશાણથી ઘસેલા પત્થરના જેવી ચીકણી છે, નીરજ-નિર્મળ છે, કેમ (6) थी २डित, शीलसपन्न छ, प्रभा (मान) मा५५पाणी છે, દર્શનીય છે, એને જેવાવાળાના નેત્ર એને જોતા જોતા ધરાતાજ નથી, એ weremorren

Loading...

Page Navigation
1 ... 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868