Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 825
________________ ७४ औषतिको मूलम्-ईसीपभारा णं पुढवी सेया संखतल-विमलसोल्लिय-मुणाल-दगरय-तुसार-गोक्खीर-हार-वण्णा उत्ताणय -छत्त-संठाण-संठिया सव्वजुणसुव्वण्णयमई अच्छा सहा __टीका-ईसीपब्भारा' इत्यादि । 'ईसीपभारा ण पुढवी' ईषप्राग्भारा खलु पृथिवी 'सेया' श्वेता 'सखतल-विमल-सोल्लिय-मुणाल-दगरय-तुसार-गोक्खीर -हार-वण्णा' शहतल-विमल-शौन्य मृणाल-दकरज-स्तुपार-गोक्षीर-हार-वर्णा-तत्र-गतल= शवस्याधस्तनो भाग , विमल=निर्मल गौन्य-श्वेतकुसुमविशेष , मृणाल कमलस्य कन्द, तुपार =हिम-'बर्फः' इति प्रसिद्धम्, हार -मुक्ताहार , गदादिहारान्ताना वर्ण इव वर्णो यस्या सा तथा, 'उत्ताणय-उत्त-सठाण-सठिया' उत्तानकच्छर-मस्थान-सस्थिता--उत्तानकम्ऊर्वमुख-विस्फारित यत् उन तस्य मस्थानमिव सस्थान तेन सस्थिता-युक्ता, 'सबज्जुणइवा) लोकमप्रतियोधना, १२-(सन्न-पाण-भूय-जीव-सत्त-सुहावहा इ वा) सर्वप्राणभूतजीवसत्वसुखावहा॥ सू० १४ ।। 'ईसीपभारा ण पुढवी' इत्यादि । (ईसीपब्भारा ण पुढवी) यह ईपप्राम्भारा नामकी पृथिनी (सेया) सफेद है। इसकी उज्ज्वलता (सखतल-विमल सोल्लिय मुणाल दगरय-तुपार -गोक्खीर-हार-वण्णा) शव के तलभागके समान, शुभ्रपुष्पके समान, मृणालके समान, कमलके समान, पानीको बिन्दुओं के समान, बर्फ के समान, दुग्ध के समान, एव मुक्ताहार के समान है। ये सब चीजें जिस प्रकार शुभ्र होती है उसी प्रकार यह भी शुभ्र है। (उत्ताणय-उत्त-सठाणसठिया) गिर पर ताने हुए छत्र के समान इसका आकार है । (सव्वज्जुण-सुवण्णयमई -भूय-जीव-सत्त-सुहावहाइवा) सर्व-प्राण-भूत-०१-सरप-सुभाह। (स० १०४) 'ईसीपमारा ण पुढवी' प्रत्याहि (ईसीपन्भारा ण पुढवी) मा पत्याला पृथिवी (सेया) स३४ छ तेनी Gorrquai ( ससतल-विमल-सोल्लिय-मुणाल-दगरय-तुसार-मोक्खीरहार-वण्णा)श मना तोयाना मागवी Garmqण, शुक्र पुरुष समान, भजना મૃણાલ જેવી, પાણીના બિ દુઓના જેવી, બરફના જેવી, દૂધના જેવી, તેમજ મતીના હાર જેવી ઉજજવળ છે આ બધી ચીજો જેવી શુજ (घोजी) हाय छे तेवी रीते मा पर शुक्र छ ( उत्ताणय-छत्त-सठाण संठिया) शिर ९५२ साढता छत्र समान तना मा छे (सव्वज्जुण

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