Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 814
________________ - पीयूपयपिणी टी २०९५,९६ सिध्यमानानां संहननसंस्थानवर्णनम् ७०३ सिझंति?गोयमा। वइरोसभणारायसंघयणे सिझंति ॥सू० ९५॥ मूलम्-जीवाणं भंते सिझमाणा कयरंमि संठाणे सिझंति १ गोयमा । छण्हं संठाणाणं अण्णयरे संठाणे सिज्झंति ॥ ९६ ॥ हे गौतम 'यहरोसभणारायसंघयणे' वर्षभनाराचसहनने 'सिझति सिद्धयन्ति ॥मू० ९५|| टीका---गौतम पृच्छति- 'नीयाण मते !' इत्यादि । ' भने!' ह भदन्त - हे भगवन् “जीवा पं सिझमाणा कयरम्मि सठाणे सिज्झति ?' जीवा खल सिध्यन्त कतरस्मिन् सस्थाने सिध्यति ? भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम । 'उण्ड सठाणाण अण्गयरे सठाणे मिज्झति' पणा मस्थानानामन्यतरस्मिन् कस्मिश्चिदेकम्मिन् सस्थाने मिष्यन्ति ।। सू० ९६ ॥ उत्तर-(गोयमा!) हे गौतम (वडरोसभणारायसघयणे सिझति) वझपभनाराचसहनन से वे सिद्ध होते है । वजनापभनाराचसहननवाला जीव ही मुक्ति को पाता है ।सू ९५|| 'जीवा ण भते " इत्यादि। प्रश्न--(भते !) हे भटत ! (जीवा ण सिज्झमाणा) जो जीव सिद्ध होते है वे (कयरसि सठाणे सिज्झति) कौन से संस्थान से सिद्ध होते है ? उत्तर--(गोयमा!) है गौतम (छह सठाणाण अग्णयरे सठाणे सिझति) छह सस्थाना में से किसी भी एक सस्थान से जीन सिद्विगतिका लाभकर सकते है ।। सू ९६॥ थाय छ ? उत्तर--(गोयमा !) गौतम! (वहरोसभणारायसघयणे सिझति) વજનાષભનારાંચમહનનથી તેઓ સિદ્ધ થાય છે વાઋષભનાગચ-સહન નવાળા 4 भुजितने मेवे छ (सू ६५) , 'जीवा ण भते ।। त्यादि । 48-(भते ! ) त ! (जीवा ण सिझमाणा) २-७३। मिद्ध याय तमा ( कयरमि सठाणे सिझति ?) या संस्थानयी सिद्ध थाय १ इत्तर-- (गोयमा। छह सिझणाण अण्णसरे सठाणे , सिज्झति) गीतमा छ સસ્થાનેમાથી કોઈ પણ એક અસરથાનથી જીવ સિદ્ધિગતિને લાભ કરી शछे (९८६)

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