Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 820
________________ जा कामराज्य लभित है। वि PAT.स १०२,सिद्धानानियासस्थानविपये भगवद्गीतमयो सयाद ७११ पिन कसाई आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकाडी वायालोकायसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दाण्णि य अउणापण्णे जायणे कद किंचिविसेसाहिए परिरएणं ॥ सू० १०२ ॥ मूलम्-ईसीपभाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए जायणाई' द्वादश योजनानि जवाहाए' अगाधया अन्तरेण-दरेण ततोऽप्युपरीत्यर्थ , 'एत्य णं' अब खलु 'ईसीयभाराणाम' ईयप्राग्भारा-सिद्धगिला नाम 'पुढवी पण्णत्ता' पृथिवी प्रज्ञता, 'पणयालीसं जायणसयसहस्साई आयामविक्रवभेण पञ्चचत्वारिंशत् याजनगतसहस्रागि आयामविकम्भेण-आयामेन विकम्मेण च, 'एगा जोयणकोडी' एका योजनकोटि 'यायालीसं च' द्वाचवारिंगच 'सयसहस्साई' शतसहस्राणि 'तीस च सहस्सार त्रिंशच महलागि, 'दोग्णि य अउणापपणे जायणसए द्वे चैकोनपञ्चाशे योजनगते, 'किंचि विसेसाहिए' मिचिद्विशेषाधिक परिरयेण परिरयेण परिधिना ।। सू० १०२ ॥ टीका---'ईसीपभाराए' इत्यादि । 'ईसीपभाराए णं पुढवीए' ईषप्रागभाराया खलु पृथिव्या 'बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जायणाइ वाहलेण' भाग से (दुवालस जोयणाइ अमाहाए ) बारह योजन दूर जाने पर, अर्थात् इन पाच अनुत्तर विमानों के शिखरों के अग्रभाग से १२ योजन ऊपर (एत्य ण ईसीपमारा णाम पुढवी पण्णता) ईपप्राम्भारा पृथिवा अर्थात् सिद्ध शिला है। (पणयालीस जोयणसयमहस्साइ आयामविक्खभेण, एगा जोयणकोटी वायालीस च सयसहस्साइ तीस च सास्साह दोणि य अउणापण्णे जोयणसए किंचि विसेसाहिए पडिरएण) यह पैतालीम लाग्य योजनको लयी-चौडी और एक करोड बयालीस लाख, तीन हजार, दो सौ उचास योजन से कुछ अधिक परिविवाली है ।। सू १०२॥ अर्थात से पाय मनुत्तविमानाना मलायी १२ यौन २ ( एत्थ ण ईसीपभारा णाम पुढवी पण्णता) ध्यत्मामा२१ पृथिवी-मर्थात सिद्धशिता छे (पणयालीम च जोयणसयसहम्माई आयामयिम्सभेपा, एगा जोयणकोडी बायालीस च सयसहम्माइ, तीस च सहस्साइ, दोण्णि र अणापण्गे जोयणसए किंचि विसेसाहिए पडिरएण) मा पास्तावीस साम योननी साथी-पडाको અને એક કરોડ બેતાલીસ લાખ ત્રીસ હજાર બસે ઓગણપચાસ એજનથી જરા વધારે પરિધિવાળી છે (સૂ૦ ૧૦૨).

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