Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 810
________________ am e rooneymoonamAAR पीयूपपिणी टीशा, सू. ५३ मिद्धस्थरूपयर्णनम् असरीरा जीवघणा देसणनाणोवउत्ता निहियट्टा निरयणा पइट्ठाणा हाति' ति, तर ते लोकामप्रनिष्टाना सन्त कोठगा भवन्तीति जिनासायामाह'ते ण' इत्यादि । ' ते ण' ते-पूर्वनिर्दिष्टा मनुष्या सल 'तत्य ' तत्र लोकाग्रे प्रतिष्ठान प्रामा सन्त , 'सिद्धा स्वति मिद्धा भान्ति । ते कोदया भवन्ती याह-'साइया' मादिका = आदिसहिता , ' अपनवसिया ' अपर्ययसिता अन्तरहिता ---अनागिन इत्यर्थ 'असरीरा' अगरीरा = पञ्चविधशरीररहिता , अन्ये वदन्ति--सगरीरोऽपि सिद्धो भवतीति तन्मतनिराकरणार्थसेस मणुया हवति सव्वकामविरया) यहाँ से लेकर (अट्ठ कम्मपगडीओ खबइत्ता उप्पि लोयग्गपडट्ठाणा हवति) यहाँ तक है। इस सूत्र में यह जो कहा गया है कि वे सिद्ध भगवान लोक के अप्रभाग में प्रतिष्टित हो जाते है, उमी विषय में अब इस मून द्वारा यह बताया जाना है कि वे मिद भगवान लोक के अप्रभाग म रहते हुए कैसे होते है। वह इस प्रकार है-(ते पण तत्व सिद्धा हवंति) वे पूर्वनिर्दिष्ट मनुष्य, लोक के अग्रभाग में प्रतिटित होते हुए मिद्ध कहे जाते है, वे (साइयाअपज्जवसिया) सादि और पर्यवसानरहित होते हैं, अथात्-वहा से फिर उहे ससार में पीछे जन्म धारण नहीं करना पड़ता है, एतदर्थ उन्हें अपर्यवसित कहा है । अनादिकाल से लगे हुए कमी का क्षय करके वे सिद्ध हुए है, अन इस अपेक्षा वे सादि कहे गये है। (असरीरा) औदारिक आदि पाच शरीरों से वे सर्वथा रहित होते है। कितनेक एसा कहते है कि मशरीर भी प्राणी सिद्ध होता है, उनके इम मिदान्त को दूर करते हुए भगवान ने सिद्धो का (असरीरा) यह विशेषण दिया है। मन्निवेसेमु मणुया हाति सम्वकामविरया) मली थी सन(अट्ठ कम्मपगडीओ सवइत्ता उप्पि लोयगपइद्धाणा हवति) मी सुधाछ २मा सूत्रमाको मायामा ६०यु छ કે તે સિદ્ધ ભગવતે લોકના અગ્રભાગમાં પ્રતિષ્ઠિત થઈ જાય છે, તે જ વિષયમાં આ સૂત્ર દ્વારા એમ બતાવવામાં આવે છે કે તેઓ સિદ્ધ ભગવતે લેકના भयनाममा रहेता देवा थाय मारे -( ते ण तत्थ सिद्वा हवति) તેઓ પૂર્વે બતાવેલા મનુષ્ય, લેકના અગ્રભાગમાં પ્રતિષ્ઠિત થઈ જતા સિદ્ધ ४ाय 2 तेगा (साइया अपज्जवसिया) साहिन्मने मत (भ-मरा)રહિત થાય છે ત્યાંથી પાછા તેઓને સંસારમાં જન્મ ધારણ કરે પડતે નથી, તે અર્થમાં તેમને અપર્યાવલિત કહેવામાં આવે છે અનાદિકાળથી લાગેલા કને ક્ષય કરીને તેઓ સિદ્ધ થયા છે, આથી એ અપેક્ષાએ તેમને सा४ि छ (असरीरा) Rोहानिस माहि पाय शरीराथी तेमा सपथा હિત થાય છે કેટલાક એમ કહે છે કે ચશરીર પણ પ્રાણી સિદ્ધ હોય છે, माता सिद्धांतने १२ ८२ पाने, मिन 'असरीरा' विशे.

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