Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 796
________________ - - - - - पीयूषवषिणी-टीका र ८६ फेयलिसमुद्घातथिपये भगयगौतमयो संपाद ६८७ मूलम्--मणजोगं जुजमाणे किं सच्चमणजोगं जुजइ ? मोसमणजोगं जुजइ ?, सच्चामोसमणजागं झुंजइ ?, असञ्चामा टीका-गौतम पृष्ठति-"मणजोग" इयादि । 'मणजोग जुजमाणे किं सचमणजोग जुंजड' मनोयोग युनान किं स यमनोयोग युक्त ? 'मोसमणजोगजुजइ?? मृपामनोयोग युक्ते । 'सचामोसमणजोग जुजई सयमपामनोयोग युक्ते किम् , भगवाअर्थात् उस क्रिया से निवृत्त हो चुकते है और पूर्ववत् शरीर में स्थित हो जाते हैं तब मनोयोग को भी प्रयुक्त करते हैं, वचनयोग को भी प्रयुक्त करते है तथा काययोग को भी प्रयुक्त करते है । समुदधात-अवस्था में मरण नहीं होता । अत मुक्ति की प्रामि उस समय नहीं होती । सू० ८६ ॥ 'मणजोग जुजमाणे इत्यादि । प्रश्न- हे भदन आपने जो अभी यह बात कही है कि समुद्घात से निवृत्त होने पर केवली भगवान् मनोयोग को प्रयुक्त करते है सो इस विषय में यह पूछता है कि वे भगवान् (मणलोग जुजमाणे) मनोयोग को प्रयुक्त करते हुए चार मनोयोगों में से कौन से मनोयोग को प्रयुक्त करते हैं (किं सचमणजोग जुजइ, मोसमणजोग जुजा, सचामोसमणजोग जुजइ, असचामोसमणजोग जुजइ?)सयमनोयोग को प्रयुक्त करते हैं, या असत्यमनोयोग को प्रयुक्त करते हैं, अथवा मिश्रमनोयोग को प्रयुक्त करते हैं, असत्यमृपामनोयोग को प्रयुक्त करते हैं ? अर्थात् व्यवहारमनोयोग को प्रयुक्त करते हैं । (गोयमा !) हे गौतम ! (सच्चમગને પણ પ્રયુક્ત કરે છે, વચનગને પણ પ્રયુક્ત કરે છે તથા કાયયેગને પણ પ્રયુક્ત કરે છે સમુદઘાત અવસ્થામાં મરણ થતુ નથી તેથી મુક્તિની પ્રાપ્તિ તે સમયે થતી નથી (સૂ ૮૬). 'मणजोग जुजमाणे ' त्या પ્રશ્ન–-હેમદન ! આપે જે હમણા એ વાત કહી છે, કે સમુદ્દઘાતથી નિવૃત્ત થતા કેવલી ભગવાન મને યોગને પ્રયુક્ત કરે છે માટે એ વિષયમાં એ પણ છુ ते पान (मणजोग जुजमाणे) भनायागने प्रयुत ४२ यार मनायगभायी ४या भनायाने ४१४२ छ? (कि सच्चमणजोग जुजइ १ मोसमणजोग जुजह सघामोसमणजोग जुजइ ? असच्चामोसमणजोग जुजइ १) सत्य મને યોગને પ્રયુકત કરે છે? અથવા અસત્યમાગને પ્રયુક્ત કરે છે અથવા મિશ્રમને વેગને પ્રયુક્ત કરે છે કે અસત્યસૃષિામનગને પ્રયુકત કરે છે मात् पहारमनायाने प्रयुत ४३ ७१ 612--(गोयमा !) है

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