Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 795
________________ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्बाइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ ? जो इण समहे । से णं तओ पडिणियत्तइ, पडिणियत्तित्ता इहमागच्छइ, तओ पच्छा मणजोगपि जुंजइ, वयजोगपि जुंजइ, कायजोगपि जुंजइ ॥ सू० ८६ ॥" तथा समुद्घातगत -हे भदन्त ! स सलु तथा समुद्घातगत कृतसमुद्घात केवली 'सिजाइ पुजार मुच्चर परिणिन्याइ सम्बदुक्खाणमत करेइ ? सिध्यति, बुभ्यते, मुच्यते, परिनिवाति, सर्वदु खानामन्त करोति किम् १, भगवानाह-'णो इणद्वे समडे' नाऽयमर्थ समर्थ ! “से ' स खल 'तो' तत समुद्घातात् 'पडिणियत्तई' प्रतिनिवर्तते, 'पडिणियत्तित्ता' प्रतिनि वर्त्य 'इहमागन्छइ' इहाऽऽगच्छति-शरीरस्थो भवति । तमो पन्छा' तत पश्चात्, 'मणजोगपि जुनई' मनोयोगमपि युक्ते, 'वयजोगपि जुजई' वाग्योगमपि युक्ते 'कायजोगं पि जुजई' काययोगमपि युक्ते ॥ सू० ८६ ॥ _ 'से ण भते ! इत्यादि। (भते) हे भदत (से ण तहा समुग्यायगए) समुद्घात अवस्था में केवली भगवान् (सिज्झइ घुज्झइ मुच्चइ परिणिधाइ) सिद्ध, बुद्ध, मुक्त एव परिनिर्वाण हो (सबदुक्खाण अत करेइ) क्या समस्त दुखो का अत करते है। प्रमु ने उत्तर दिया कि (गोयमा) हे गौतम ! (णो इणद्वे समडे) यह अर्थ समर्थित नहीं है। (से ण तओं पडिणियत्तइ, पडिणियचित्ता इहमागच्छद, आगच्छित्ता तो पन्छा मणजोग पि जुंजइ, वयजोग पि जुजइ, कायजोग पि जुजइ) किन्तु जब वे समुद्घात कर चुकते हैं 'से ण भवेत्यादि (भते ।) मत (से ण समुग्यायगए) समुदधात अवस्थामा FReी मगवान् (सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिणिन्वाइ) सिद्ध, मुद्ध, मुत तभ०४ परिनिवाए धन (सव्वदुक्साण अंत करेइ) शु समस्त माना मत ४२ छ १ प्रभुये उत्तर माध्यो (गोयमा ! ) गौतम (णो इणट्टे समढे) मा म समर्थित नथा (से ण तओ पडिणियत्तइ, पडिणि यत्तिता इहमागच्छइ, आगच्छित्ता तओ पच्छा मणजोग पि जुजइ, वयजोगपि जुजइ, कायजोग पि जुजइ) ५२तु न्यारे समुहधात श युहेछ अर्थात् त કિયાથી નિવૃત્ત થઈ જાય છે અને પૂર્વ પ્રમાણે શરીરમાં સ્થિત થઈ જાય છે ત્યારે

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