________________
पोपापणी-टीमा सु २ गोतमस्वामिनो भगवत्समीपे गमनम
प्पण्णसंसए समुप्पण्णकोऊहले उट्टाए उदंड उहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छन् उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं निक्खुतो आयाहिणपवाहिणं करेड करिता
५०/
'समुप्पण्णससए' समुपन्नन्गा 'समुप्पण्णको ऊहल्ले' सम्पन्नकुतूहल, श्रद्धान्य शब्दा व्याख्याता और श्रद्धा कार्यकारणभार | प्रारूपा श्रहा जाता, तम्या कारण- संजय उत्तृहल चेनि । 'उडाए उट्टेड' उथया उद्यानावत्या स्यामनात् उत्तिष्ठति, उथाय, 'जेणेव समणे नगर महावीरे ' यौन श्रमणो भगवान महावांगे विराजत इति शेष, ' तेणे वागच्छतपागच्छति, 'उनागच्छित्ता ' जागय, 'समणं भगर महावीर ' श्रमणम्य भगवतो महानरम्य, 'तिम्युत्ती जायाहिणपयाहिण करे' निव आणिणि करोनि, 'करिता ' कृपा 'बंदर णमसट '
"
तरह अपने प्रश्न के उत्तर को सुनने के लिये जो उनके चित्त में उण्ठा नागृत हुई वह भी सामान्यरूप से ही | फिर नाद में 'उत्पन्नमड्ढे' आ पढों द्वारा जो सुनकर ने श्रद्धा को उपन्न आदिरूप में प्रकट किया हे उसमे श्रद्धा आदि में उत्तरोउत्तर विशेषता जाननी चाहिये। इस प्रकार के वे गौतमप्रभु ( उदाए उडेड) उत्थानशक्ति द्वारा अपने स्थान से उठ और (उता जेणेत्र समणे भगव महावीरे तेणे उवागच्छङ) उठकर जहा प्रभु श्रमण भगवान् महानीर निराजमान थे वहाँ पहुँचे, (उआगच्छित्ता समण भगव महावीर विक्खुतो आयाणिपयाहिण करेड) पहुँचने ही उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर प्रभु को तीन नार आणि प्रदक्षिण किया, (करिता ) फिर बाद में बन्ना एव
ઉત્પન્ન થયા તે પણ મામાન્યરૂપથી જ થયા હતા. આવીજ રીતે પેાતાના પ્રશ્નને ઉત્ત નાભળવાને માટે તેમના ચિત્તમા રે ઉ。。ા જાગ્રત ચઈ તે પ भाभान्यउपनीर हुती पत्यार पछी (उपण्णमड्टे) आहि पो हाग ने સૂત્રકારે શ્રદ્વાને ઉત્પન્ન આદિ ૩૫થી પ્રકટ ૰ી દે તેવી શ્રદ્ધા આદિમા उत्तरोत्तर विशेषता अगुवी लेखे या अजरना ते गौतम प्रभु ( उडाए उड्डेड्डे) 'उत्थानशक्ति द्वारा पोताना भ्यानथी उठेचा, भने (उट्ठित्ता जेणेन समणे भगन महावीरे तेणेव आगच्छइ) डीने त्या प्रभु श्रभशु भगवान महावीर मिग४भान हता त्या महे।स्या ( उनागच्छित्ता समण भगन महावीर तिम्खुत्तो आया हिणपयाहिणं क्रेइ) पहायता ? तेभावे श्रभधु ભગવાન મહાવીર પ્રભુને ત્રણ