Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 752
________________ ! पीयूषवर्षिणी-टीका सु. ६३ अल्पारम्भादिमनुष्यविषये भगवदगौतमयो सवाद ६५१ पुच्छियट्ठा अभिगयट्टा विणिच्छिया अहि- मिंज - पेमा - णुरागरत्ता, अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अट्ठे, अयं परमट्टे, सेसं अणहे, ऊसियफलिहा अवगुयदुवारा चियत्तं - तेउर-घरप्पवेसा वहूहि , यहा ' पृष्टार्था - सदिग्धार्थस्य प्रश्नकरणात् 'अभिगयट्ठा' अभिगतार्था - पृष्टार्थस्याभिगमात् 'विणिन्डिया' विनिधिताया पदार्थाना विनिधयात्, 'अहि-मिज - पेमा -- राग-रत्ता ' अस्थिमज्जा प्रेमानुरागरक्ता अस्थीनि- 'हड्डी' इति प्रसिद्धानि, मज्जा - अस्मा मध्यगतो धातुविशेष, तासु अस्थिमजासु प्रवचनस्य प्रेमानुरागेण प्रेमरूपेणानुरागेण रक्ता ये ते तथा, ते श्रावका पुनादीन् मनोध्य वदन्ति 'अयमाउसो' इत्यादि । इदं हे आयुष्मन् । 'निगये पात्रयणे ' नैर्व्रन्थ प्रचनम्, 'अहे' अर्थ =मोक्षस्य कारणम्, अतएव 'अय परमट्ठे' इद परमार्थ =मारभूत, 'सेसे अणडे ' शेपमनर्थम् - शेप नै चप्रवचनभिन्न कुप्रवचन धनवान्यपुनकलनाविकच अनर्थ = व्यर्थम् 'ऊसियफलिहा ' उच्छ्रितस्फटिका - उच्छ्रि तम् = उन्नत स्फटिक = स्फटिकमिव चित्त येषा ते तथा, स्फटिक निर्मलहृदया इत्यर्थ, हैं, पृष्टार्थ है, अभिगतार्थ है, (विणिच्छियद्वा) विनिधितार्थ हैं, (अट्टि - मिंज - पेमा णुरागरत्ता) प्रवचन के प्रति अनुराग जिनकी नग-ना में भरा हुआ है । ऐसे ये श्रावक जन वार्तालाप के प्रगम अपने २ पुनादिकों को अथवा अन्यजनों को इस प्रकार कह कर समझाते - बुझाते हे - ( अयमाउसो ! निग्गथे पावयणे अट्टे अय परमट्ठे सेसे अण्डे ) ह आयुमत् | यह निर्णय प्रवचन ही मोक्ष का कारण है इसलिए यही परमार्थभूत है । इससे भिन्न जो कुप्रपचन है- मिध्यादृष्टिया द्वारा उपदिष्ट प्रवचन है वह तथा धन, धाय, पुत्र एव फलनादि, अनर्थ के कारण हे। इन व्यक्तियों का (ऊसियफलिहा ) हृदय स्फटिक wh भनी यस हि श्रद्धा छे, ने सम्धार्य छे, गृहीतार्थ छे, पृष्टार्थ छे, अলिगतार्थ छे, (निणिच्छियट्टा ) विनिश्चितार्थ छे, ( अट्ठि - मिंज पेमा पुराग-रत्ता ) જેની નસેનસમા પ્રવચન પ્રતિ અનુગગ ભરેલ હાય છે એવા એ શ્રાવક જન વાર્તાલાપના પ્રસંગમા શ્વેતપેાતાના પુત્રાદિકને અથવા ખા લેાકાને अरे महीने समभवे मुआवे छे (अयमाउसो । निग्गथे पावयणे अट्टे, अय परमट्ठे, सेसे अणट्टे) हे आयुष्मन् ! या निर्थन्य प्रवथन न भोक्षनु भश्शु ૐ માટે એજ પરમાથ ભૂત છે તેનાથી બીજા જે કાઈ પ્રવચન છેતે મિથ્યાદૃષ્ટિએ દ્વારા ઉપદેશાયેલા પ્રવચન છે, તે, તથા ધન, ધાન્ય, પુત્ર તેમજ કક્ષેત્ર महि, अनर्थना भर हे या व्यक्तिसोना (हृदय ( ऊसियफलिहा ) ३टिङ

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