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औपातिकको 'मूलम्-तएणं से बलवाउए' कूणिएणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हेतु जाव - हियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मस्यए अंजलिं कह एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता हत्थिवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी
टीका-'तए ण' इत्यादि । 'तए णं से घलवाउए' तत सल म बलल्याप्रत - सेनापति 'कूणिएणं रण्णा एवं बुत्ते समाणे कृगिकेन राजा एवमुक्त सन्, 'हद्वतुद्ध जाव-हियए' इष्टतुष्टयावद्धृदय 'कग्यलपरिगडिय' फरतल्परिगृहीत-बद्धकरतलयुगरम्, 'सिरसावत' शिरआवत्तं 'मत्थए अनलिं कटु' मस्तके अनलिं वा एवं सामिति आणाए विणएण यण पडिमुणेइ एव स्वामिन् ' इति आज्ञाया विनयेन वचन प्रतिशृणोति एव स्वामिन् । यद्यथाजापयति देवस्तत्तथैव मपाढयामि-इयुक्त्वा आजाया वचन सविनय प्रतिशृणोति=स्वीकरोति, प्रतिश्रुय स्वीकृत्य~-' इस्थिवाउय
'तए ण से वलवाउए' इयादि। - - - - - -
(तए ण) इसके बादः (से बलवाउए) वह सेनापति (रण्णा एवबुत्ते समाणे) राजा के द्वारा इस प्रकार से आज्ञापित होता हुआ (ह-तुटु-जाव-हियए करयल-परिगहिय सिरसावत्त मत्थए अनलिं फट्ट एव सामित्ति आणाए विगएण वयण पडिसुणेइ) विशेष हर्पित एव मतुष्ट हुआ, यावत् अन्त करण मे प्रफुल्लित हो गया। दोना हाथों को जोड़कर मस्तकपर अजलिरूप मे उहें स्थापित करते हुए फिर वह इस प्रकार बोला कि हे स्वामिन् । आपने जिस प्रकार का आदेश प्रदान किया है वह मै उसी प्रकार से स्पादित करूँगा। इस राति से विनयपूर्वक उसने राजा के आदेश को स्वीकार कर लिया। -- 'तए ण से बलगाउए' त्याहि ।। । . . . - । (तए ण) त्या 4 (से बलवाउए) ते सेनापति (रण्णा एव वुत्ते समाणे) सनी द्वारा मारे ज्ञापित थता (हदु-तुद-जाव-हियए करयल-परिमाहिय सिरसावत्त मत्थए अजलिं-कट्ठ एव सामित्ति आणाए विणएण वयण पडिसुणेइ) વિશેષ હર્ષિત તેમજ સંતુષ્ટ થયે, યાવત્ અતકરણમાં પ્રફુલ્લિત થઈ-ગ " અને હાથ જોડીને મસ્ત ઉપર અ જલિરૂપે તેમને સ્થાપિત કરી પછી તે - આ પ્રકારે છેલ્યો- કે હે સ્વામિન્ ને આપે જે પ્રકારન-આદેશ પ્રદાન કર્યો છે તે હ તેવી જ રીતે આ પાદિત કરીશ આ રીતે વિનયપૂર્વક તેણે રાજાના