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औपपातिकत्रे
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जन्मजरामरणोच्छेदकवेन चतुन्यवात् वर च तचातुरन्तचक परचातुरतचक्रम्, चरपदेन राजचकाsपेक्षयाstr श्रेत्व व्यज्यते लोकद्रयसाधकचात् धर्म एव वरचातुरन्तचक धर्मवरचातुरन्तचक्र, तादृगस्य धर्मातिरिक्तस्याऽसम्भवात्, अतएव सौगतादिधर्माssभासनिरास, तेपा तात्विकार्थप्रतिपादकचाभावेन श्रेष्टवाभावात्, धर्मवरचा तुरन्तचकेण वर्तितु गोल येपामिति धर्मवरचातुरतचकार्तिनस्तेभ्य | चक्रवर्तिपदेन पट्खण्डाधिपतिसादृश्य व्यश्यते, तथा हि चचार = उत्तरदिशि हिमवान् शेषदिक्षु चोपाधिभेदेन समुद्रा अन्ता सीमानस्तेषु स्वामित्वेन भवाथातुरता, चक्रेण रत्नहै । यह चातुरन्त ही एक चक है, क्यों कि चक जिस प्रकार पर का उच्छेदक होता है उसी प्रकार यह "चातुरन्तचक्र" भी जीवों के जन्म, जरा एव मरण का उच्छेदक है । इसलिये इसमें नक की उपमा सार्थक होती है। 'वर' शब्द का अर्थ उत्कृष्ट है, यह चातुरतचक में उत्कृष्टता धोतित करता है । राजचक की अपेक्षा यह च उत्कृष्ट है । क्यों कि यह लोक में हित का साधक होता है । धर्म ही एक उत्कृष्ट चातुरन्त चक्र है, अन्य नहीं । इस कथन से अन्य सौगतादिक समत धर्म में धर्माभासता होने से तात्विक अर्थ को प्रतिपादन करने का अभाव कथित हुआ है, अत उनमें श्रेष्ठता नहीं है । इस धर्मवरचातुरन्तचक के अनुसार जिनका नर्तन करने का स्वभाव है वे धर्मवरचा तुरन्तचक्रवर्ती कहे गये हैं । " चक्रवर्ती " पद से पट्खड के अधिपति का सादृश्य अभिव्यक्त होता है । "चत्वारः अन्ताः- चतुरन्ताः " यहा अन्त शब्द का अर्थ सीमा होता है । उत्तरदिशा मे हिमवान् एव शेष तीन दिशाओं में उपाधि के भेद से तीन समुद्र ये चतुरन्त पद से गृहीत
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તેજ પ્રકારે આ ચાતુરન્તચક્ર પણ જીવેાના જન્મ, જરા તેમજ મરણને ઉચ્છેદ કરે छेथे भाटे भाभा यऊनी उपमा भार्थ थाय छे 'वर' शब्हनो अर्थ उत्सृष्ट છે. આ પદ ચાતુરન્તુચક્રમાં ઉત્કૃષ્ટતા ઘોતિત કરે છે. રાજ્યકની અપેક્ષાએ આ ચક્ર ઉત્કૃષ્ટ છે કેમકે આ બન્ને લેાકમા હિતનું સાધક થાય છે ધર્મજ એક ઉત્કૃષ્ટ ચાતુરન્તચક્ર છે, બીજી નહિ ! આ કથનથી ખીજા સૌગત આદિક ગમત ધર્મીમાં ધર્માંલાગતા હૈાવાથી તાત્ત્વિક અને પ્રતિપાદન કરવાત અભાવ કહેવામા આવ્યે છે, માટે તેમા શ્રેષ્ઠતા નથી આ ધર્મવર ચાતુરન્તચક્ર અનુસાર જેનું વર્તન કરવાને સ્વભાવ છે તે ધવરચાતુરન્ત ચક્રવતી કહેવાય છે "थपती" पहंथी पट (छ) पडना अधिपतिनु LI અભિવ્યક્ત થાય चत्वार अन्ता चतुरन्ता. " सही भन्त માદૃશ્ય શબ્દના અર્થ સીમા થાય છે ઉત્તરદિશામા હિમવાન તેમજ શેષ ( બાકીની )