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यदि वृक्ष की है तो वृक्ष के प्रदेशों में हो रहना चाहिये, क्योंकि जिस का जो गुण पर्याय होता उसके प्रदेशों में ही वह रहता, सो छाया तो वृक्ष प्रदेश में है नहीं, बात यह है कि वृक्ष के निमित्त से पृथ्वी की, छाया रूप अवस्था हुई, इसी तरह स्त्री पुत्र भोजन आदि के निमित्त से मोही के साता परिणाम रूप, सुख की विकार अवस्था होगई वह उसी का सुख है न कि स्त्री आदि का ।
ॐ + 8-१५२. अपने वर्तमान परिणाम की परीक्षा करिये। इसमें
स्वभाव का झरना कितना बह रहा है और विभाव की कीच कितनी भरभरा रही है।
१०-२२६. यदि अपने आत्मा को शुभाशुभयोगों से रोकना
है और शुद्ध ज्ञानदर्शनमय आत्मा में ही प्रतिष्ठित करना है तब दृढ़ भेदविज्ञान का सहारा लो। .
ॐ ॐ भ ११-२४७. केवल ज्ञाता द्रष्टा रहना ही शान्ति का रूप है, सो तेरा वह स्वभाव कहीं से लाना नहीं किन्तु इसका आच्छादक जो अहंकारता व ममकारता है उसका ध्वंस