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१५ दुःख
१-२२. दुःख का कारण व दुःख का आत्मा व दुःख का कार्य मोह, राग और द्वप है।
卐 ॐ 卐 २-५०. योग्यता से बाहर का काम और अनधिकार चेष्टा स्वयं विपढा है।
ॐ ॐ ३-८८, पर पदार्थ में आत्मवृद्धि होना दुःख है और आत्मा
में आत्म चुद्धि होना सुख है ।
४-२१५. स्वकल्याण की तड़फड़ाहट भी दुःख ही पहुंचाती, अतः घबड़ाहट के बिना अपना कर्तव्य पालन करना श्रेयस्कर है।
ॐ ५-२१६. स्वकल्याण की भी तड़फड़ाहट तथा अन्य दुःख
मय विकल्पों को हटाने के लिये इस पद्य का चिन्तवन करो "जो जो देखी वीतराग ने सो सो हो सी वीरा रे।