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[ २०० ] योग्य काम करा रहा है, न कहने योग्य वचन कहा रहा है, न सोचने योग्य बात सोचाया करता है।
५-५३३. काम क्रोध मान माया लोभ इनमें किसी एक के
भी तीत्र उदय में चित्त बलहीन होजाता है और फिर प्रत्येक कार्य में अधोरता रहती है, अतः उक्त पांचों शत्रुवों पर भेदविज्ञानमय शस्त्र का प्रहार कर ।
६-५३८. राग के बाहुल्य से होने वाले इष्टसिद्धि के अभाव
से जन्य शोक के कारण ही दिल कमजोर और अधीर हो जाता है जिससे मनुष्य बहुत संक्लिष्ट व परेशान हो जाता है और इस परेशानी को मिटाने के लिये पर पदार्थ में कुछ करने का उद्यम करना चाहता है, परन्तु मूल कारण जो आत्मा में रागविकार है उसे समझता नहीं और न हटाना चाहता है।
७-६७२. जो पुरुष कपायों से जितना दूर रहेगा वह उतना
ही धीर व गंभीर होगा, कपायों के दूर किये बिना धीरता व गंभीरता नहीं आती।