Book Title: Atma Sambodhan
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Satsang Seva Samiti

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Page 312
________________ [ २६६ ] स्थ रहेगा या तुम्हारा पिंड छोड़कर दुःख से सदा को मुक्त करा देगा। १२-४३२. हे पात्मन् ! तूने अनन्त भर बिता दिये जिनमें विविध भोग भोगे अब यह भव विना भोग का सही बिना अहंकार वा ममकार का सही फिर अनन्त काल सुग्व भोगेगा दुःख की छाया भी न रहेगी। १३-४६१. बोले सो विवृचे, अतः यदि लोगों से बोलने का अवसर मिले तब पहले प्रात्मदृष्टि कर लो पुनः सारधानी से बोलो। १४-४७८,यात्मस्थिति हो सर्वोच्च सुख है प्रात्मगत है पर इसके लिये प्रिय से प्रिय पदार्थ की स्मृति व इच्छा छोड़नी होगी? १५-४६०. जिसे दुनियाँ उन्नति समझती है वह तो है श्रात्मावनति और जिसका दुनिया को पता भी नहीं है वह हो सकती उन्नति, अतः जगत से कुछ काम नही सरता अपने अभिमुख बनो और जो करते हो वह

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