Book Title: Atma Sambodhan
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Satsang Seva Samiti

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Page 315
________________ [ २७२ ] ५८ प्राकिञ्चन्य XXXX १-५३५. आत्मा का कोई नाम नहीं है न जाति, कुल, शरीर है न सम्प्रदाय है तव नामवरी ही क्या ? और झिस की ? व कहाँ ? और इस व्यवहार का बड़प्पन ही क्या ? कपाय के आवेश में कुछ से कुछ दीखने लगता। कपाय अग्नि को शान्त कर ठंडे दिल से विचारो तो तुम्हारा कहीं भी कुछ नहीं है। २-५४०. श्रात्मन् ! सकल आत्मा तुझ आत्मा से भिन्न हैं, उनकी कुछ भी परिणति से तुम्हारा कुछ भी परिणमन नहीं होता अतः उनके लिये व उनके निमित्त से कुछ भी क्षोभ मत करो; शांति,शक्ति की उपासना से अविचल और सुखी बनो। ३-५५६, इस शरीर को (जहाँ तुम हो) येक दिन यदि इन परिचयवालों के समक्ष मरण करोगे तब ये ही परिचय वाले सज्जन आग लगा कर खाक कर देंगे, और फिर...इस शरीर में रखा हो, क्या है ? पर वस्तु को

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