Book Title: Atma Sambodhan
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Satsang Seva Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 327
________________ [ २८४ । में तुम शान्त तो हो नहीं संके फिर इन संस्कारों को छोड़ो, अलौकिक वृति धारण करो, दुनियां को अपरिचित समझो। १४-६०६. जो पुरुष दूसरों की शान्ति की परवाह न करके किसी भी क्षम्य बात को अशान्ति से करता है वह निर्दय पुरुष है उसका मनोबल हीन हो जाता है और स्वयं अशान्त रहता है अतः प्रत्येक बात को सावधानी से दूसरों की शान्ति की रक्षा का विचार करते हुए रखो। ॥ ॐ ॥ १५-६१४. यदि वास्तविक शान्ति का अनुभव करना चाहते हो तब इसी समय सब को भूल जावो. बाह्य में कितने ही वायदा हों या कितने ही कामों को हाथ लिया हो । ज्ञान का विषय ज्ञानमात्र ही रहे फिर अशान्ति का लेश नहीं। १६-८६१. शान्ति का उदय आत्मा में आत्मा के द्वारा होता है, पर वस्तु शान्ति का' साधक नहीं प्रत्युत शान्ति के अर्थ पर वस्तु की खोज करना अशान्ति ही है । ॐ ॐ ॐ

Loading...

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334