Book Title: Atma Sambodhan
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Satsang Seva Samiti

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Page 329
________________ [ २८६ ] सकते क्योंकि प्रत्येक आत्मा अपना ही अकेला कर्ता भोक्ता है और यही व्यवस्था तेरी है अतः दूसरों की दृष्टि में भले बनने के लिये दूसरों को प्रसन्न करने की चेष्टा मत करो। ७-२६८. रे मनोहर ! दुःख से मुक्त होने के लिये तेरा ही भेड़ विज्ञान वल तुझे.शरण होगा अन्य नहीं।। ८-२७४. सम्यक्त्व परिणमन रूप निज पुत्र को पैदा करो ऐसे पुत्र के बिना तेरी निर्वाणगति न होगी, यही "अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' का अर्थ समझो। १-५३२. हे शुद्धस्वभाव ! प्रसन्न होहु, प्रगट होहु, मुझ अनाथ का अन्यत्र कहीं शरण नहीं है, तेरे सिवाय सब ही भाव सब ही पदार्थ सब ही लोग सब ही व्यवहार केवल धोखा है अथवा अब अपने पर दया कर, बहुत हँसी करली, अब रहने दे। १०-६१६, बाह्य में यदि शरण हैं तो पञ्च परमेष्ठी हैं सो भी उनका स्मरण शरण है और स्वयं में यदि शरण है

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