Book Title: Atma Sambodhan
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Satsang Seva Samiti

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Page 316
________________ [ २७३ ] जबर्दस्ती क्यों अपनाते ? मूर्ख ! ये तो अपने होते ही नहीं, क्योंकि ऐसा ही वस्तुस्वरूप है, अपने रूप परिणमन होना ही अपना स्त्र है और उसके ही तुम स्वामी हो । + ॐ ४-५७२. जब तुमने दुनिया को त्यागा तब दुनियाँ के लिये तुम्हारी सत्ता नहीं रही याने तुम कुछ नहीं रहे फिर भी यदि दुनियां में जबरन किसी के कुछ बनना चाहो तो तुम्हारा जीवन व्यर्थ है । ५-६२०. मुझे कुछ नहीं चाहिये क्योंकि मेरे पास कुछ आता भी तो नहीं है, सर्व पदार्थ जुदे जुदे और स्वतन्त्र हैं। ॐ ॐ ॐ ६-६२३. कौन पदार्थ मेरा हित कर सकता ? कोई नहीं, तो फिर मेरे कोई इष्ट नहीं । ७-६२४. कौन पदार्थ मेरा निगाड़ कर सकता ? कोई नहीं; तो फिर मेरे कोई अनिष्ट नहीं । 卐 ॐ 卐 ८-६३५. किसी की कुछ प्रतिष्टा हो, मुझे नहीं चाहिये

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