Book Title: Atma Sambodhan
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Satsang Seva Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 283
________________ [ २४० ] . XXRRuuuuu misht +LARUdan ५२ अहिंसा १-५१६. मोह राग द्वेष से रहित होना तथा ज्ञान का सहज परिणमन होना ही आत्म जागृति है, इस ही अवस्था का नाम पूर्ण अहिंसा है इसके फलं स्वरूप अन्य आत्माओं को उसके निमित्त से वाधा नहीं होती इस लिये यह सुसिद्ध है कि आत्मीय सुख पाना अहिंसा का अन्तरङ्ग फल है और अन्य जीवों को बाधा न होना अहिंसा का बहिरंग फल है, आत्मा का स्वभाव अहिंसक है, स्वभाव पाने का उपाय अहिंसा है स्वभावरत हो जाने की दशा अहिंसा है, इसे ही ध्येय बनायो। २-५२०. संसार में जितने द्रव्य हैं वे अपने अपने स्वरूप में ही परिणमन करते हैं, दूसरे द्रव्य के गुण पर्याय में नहीं परिणमते, न उनके स्वरूप का बिगाड़ करते अतः इस वस्तु स्वातन्त्र्य की दृष्टि में उपादान तथा पर का स्वरूप न बिगाड़ने के कारण सारा जगत अहिंसामय है परन्तु इससे विपरीत दृष्टि होने पर दृष्टि करने वाला ही अशान्त और विपन्न हो जाता है। अजीव पदार्थ का

Loading...

Page Navigation
1 ... 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334