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५४ तत्व-स्वरूप
१-५. विभाव केवल एक पदार्थ (अबद्ध) रहने में नहीं, दुःख
भी केवल आत्मा में नहीं, दूसरी वस्तु के सम्बन्ध से दुःख होता और दूसरे का पर्यायवाची शब्द द्वन्द्व है तभी तो लोकों ने दुःख का नाम द्वन्द्व (दन्द) ही रख दिया।
२-७. प्रत्येक मोही जीव अपने सुख को चाहते हैं, दूसरों
को या दूसरों के सुख को चाहना भी अपने सुख के लिये हैं, यह मुझे चाहता है ऐसा मानना भूल है । सर्व वस्तु की क्रिया अपनी अवस्था की प्राप्ति के लिये है।
३-१४. दूसरे से बात करते समय अपनो व उनकी अनंत
शक्ति का स्मरण करते रहो।
४-८६.अनेकांत में धर्म स्वभाव गुण क्रिया आदि विविध हैं
तो अपेक्षा भी विविध है, विरुद्ध अनेक धर्म की 'अपेक्षा'