________________
[ २५० ] रहता तयापि वह ज्ञान चैतन्य चमत्कार मात्र है।
६-२८६. जैनधर्म है मो सत्य धर्म है यह तो पक्षगत बात
है किन्तु जो सत्यधर्म है वह मोहादि शत्रुवां के जीतने वाले (जिन) भगवान के द्वारा प्रकाशित धर्म है यह निष्पक्ष बात है।
卐 ॐ ॥ १०-४६२. कोई लोग सोचते हैं कि एक ब्रह्म में से ये कण
निकलते हैं तब ये प्रश्न उठने अवश्यंभावी हैं कि क्यों निकले १ इच्छा क्यों हुई आदि ।
॥ ॐ ॐ ११-४६३. एक अखंड द्रव्य के कुछ प्रदेश शुद्ध और कुछ
अशुद्ध हों यह नहीं हो सकता, जहां कोई शुद्ध और कोई अशुद्ध दिखे वहां अनेक द्रव्य ही समझना ।
१२-४६४. सर्व जीवात्मा यदि एक ब्रह्म के अंश है तब
अंशों की करतूत से ब्रह्म को ही दुखी होना चाहिये यदि खुद दुखी है तब क्या खुद के दुःव दूर करने में वह शक्तिहोन है ? यदि है तब लोकवत् महत्त्व हीन हो गया।
卐 ॐ ॐ