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[ २४२ ] अहिंसामय है उसे माननेवाला आदि ।
५-८०६. यह संसार तो काजल की कोठरी है उसकी
कालिमा से बचने का उपाय बस एक यह है-अहिंसामय आत्मतत्त्व का दर्शन और आचरण ।
६-७६०. आत्मन् ! ऐसा कौनसा कार्य अटका है जिसके लिये दूसरों को सताना पड़े, तेरा कार्य तो ज्ञानमात्र बने रहना है।
मॐ ७-७६८. क्रोधादि कषाय ही हिंसा है, इनके मेटने का एक
उपाय यह भी है-"जब तेरे क्रोधादि कषाय हों तब उन्हें बाहर व्यक्त न करो यद्यपि भीतर कुछ भी रोकना बुरा है तथापि जब वे होते हैं तब क्या करें ? - बाहर व्यक्त होने पर प्रायः कषाय की संतति हो जाती है और अनेक विवाद व कलह उत्पन्न हो जाते हैं तथा जो कषाय आगया जिसे कि व्यक्त न होने दिया उसे, अपने अहिंसक स्वभाव को लक्ष्य में रख कर शीघ्र हटा दो" इस उपाय को अपने जीवन में सदा करते रहो, क्योंकि अहिं. सा ही सर्वोच्च सुख का उपाय व स्वरूप है।
ॐ ॐ ॥