________________
[ २३५ ]
नहीं यतः सर्वदा इस ज्ञाने पयोग का ही ध्यान रखो। ॐ ॐ फु ७-६६३. शुद्धात्मा के अतिरिक्त अन्य विषय के चिन्तवन करने की कपाय पाप का उदय है और यह परम्परा महाले गर्त का कारण है इसलिये अन्य चिन्तवन से उपयोग निवृत्त करो इससे शान्ति का मार्ग अवश्य प्राप्त होगा ।
फ्र ॐ क
३-२-५१ के प्रातः श्री बड़े वर्णी जो
८-७१६. आज ता० ० चाँ: मल जी, चु० संभवसागर जी ब्र० नन्हें मल जी यादि के साथ पर्यटन को गया तब श्री बड़े वर्णी जो ने अपना गत रात्रि का स्वप्न सुनाया "मनोहर को
निरूप में देखा बिल्कुल शान्त सौम्य... सौम्यमुद्रा से कायोत्सर्ग खड़े हुए, तब मैंने (बड़े वणी जी ने पूछा कि लज्जा परीपद जीत ली ? तत्र बोला कि दिगम्बर हुये फिर लज्जा की क्या बात" इस मेरे मन यही भावना रही कि कम महाराज जी का यह स्वप्न पूरा हो ।
स्वप्न को सुन कर
1
ॐ ॐ ६-७७२, परमात्मस्त्ररूप एक है और वह है ज्ञायक भाव इसकी ही उपासना नृपभदेव, महावीर स्वामी, रामचन्द्र