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में निमित्त हो सकते, यदि कोई तुम्हारी प्रशंसा ही करे रुके नहीं तब तुम उपद्रव सा समझकर णमोकार मन्त्र को स्मरण करते हो ।
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१५ - ४००. प्रशंसा किये जाने पर संतुष्ट होना कापातलेश्या है, यदि इस कापतिलेश्या को नहीं जीत सके तो अशुभ परिणामी ही हो, शुभलेश्या का वहां भाव ही पैदा नहीं हो सकता अतः रचनात्मक सुख का मंत्र यही है जो प्रशंसा का क्लेश की खान मान कर उसमें संतुष्ट मत होवा और बुद्धि की भावना करो ।
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१६- ४२३. यदि कोई तुम्हारी बुराई करता है ते। यह सोचो कि यह दाप तुझ में है या नहीं ? यदि है तब बुरा मानने की बात ही क्या ? वह तो तुम्हें शिक्षा दे रहा है अतः परम मित्र है |
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१७- ५०५, अपने व दृश्य मनुष्यों के प्रति सोचो इन दृश्य मानवों ने यदि मुझे कुछ अच्छा कह दिया तो मुझे क्या मिल गया ? कौन से हित की वृद्धि हुई ? मैं