________________
[ ४७ ] --३६७. मरण की शंका के काल में तुम यह सोचकर दुखी होते जा मैंने समता सोधन न कर पाया । अतः अब से समता परिणाम हो का साधन करो जिससे तुम्हें मरण मात्र की भी शल्य न हो।
ॐ ॐ म ६-३६८. अन्त में तो सब छोड़ना होगा तथा यश भी मंद होकर नष्ट हो जावेगा, अतः अच्छा हो जो तुम ही पहिले से सावधान होकर सबसे उपेक्षित होकर समता. मृत का पान करो।
१०-४२५. समता परिणाम करने रूप निजकार्य के अतिरिक्त जितने भी कार्य हैं वे इच्छानुसार तो होते नहीं
और छोड़े भी जाते नहों, केवल उनके कारण मूढ़ को दुखी ही दुखी होना पड़ता है जैसे मच्छर लड्ड, को खा तो सकता नहीं और छोड़ भी सकता नहीं किन्तु क्लिष्ट होता रहता है।
११-५३६. हे समते ! आवा, इस भूले भटके बने गरीब को
अब तो अपनावा, इस जीव ने अपने आप आपत्ति