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१६-४१२. तुमने जो कुछ किया अपनी शान्ति के अर्थ. रागमय चेष्टा की जो शान्ति के विपरीत थी, पर द्रव्य का तुम कर हो क्या सकते थे ? अतः कर्तृत्वबुद्धि को छोड़ और मैंने अमुक कार्य किया ऐसा सोचने के
एवज में यह सोचो “मैंने यह अज्ञानमय चेष्टा की" ।
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२० - ४४४, कौन किसका उपकार करता है ? केवल अपनी
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. वेदना मेटने का ही सब प्रयत्न करते हैं अर्थात् जब राग
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की वेदना नहीं सही जाती तब कमजोरी के कारण वाह्य में चेष्टा करना पड़ती है ।
ॐ फ्र
२१- ४७६. जो लोग यश या प्रशंसा गाते हैं वे स्वयं की कषाय का प्रतीकार करते हैं, तुम्हारा कुछ नहीं करते हैं,
झूठमूठ कतु स्वबुद्धि करके फूलना मूढों का कार्य है ।
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२२-४७७, जो लोग अपवाद या निन्दा करते हैं वे स्वयं
की कषाय का प्रतीकार करते हैं, तुम्हारा कुछ नहीं करते, झूठमूठ उन्हें अपना विकर्ता मान कर दुखी होना. मूठों का कार्य है ।