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६ निजाचार
१- ३. प्रवचन के समय जो तुम श्रोतावों से कहते हो वह अपने से भी कह लिया करो ।
ॐॐॐ 卐
२- १३. एक क्षण भी स्वाध्याय, सत्समागम व ध्यान
छोड़ना आपत्ति में पड़ना है अतः उन उपायों से अपने आचरणरूप रहो |
与学卐
३ - २५. एक तो यथा तथा चिन्तावों का भार मुझ पर था
पथ पर जाना
ही, पर लोक मुझे कुछ अच्छा कह देते यह भी बड़ा भार मुझ पर लदा हुआ है; हे नाथ ! आपके स्मरण के प्रसाद से आपके ज्ञान में मेरा उन्नति देखा हो तब तो संतोष की बात है, विरुद्धता मिटाने के लिये अवनति पथ पर जाना बुरा है ।
क्योंकि उक्त
फ्रॐ फ्र