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शरण कर्म के
विनाश से
कि सांसारिक सुख भी आत्मा प्राप्त करता है तो जहां कर्म का सर्वथा अभाव है वहां तो आत्मा अनंत अनाकुल सुख का भण्डार है, इसमें संदेह का लेश नहीं ।
फॐ फ्र
५ - १६८. हे नाथ ! मुझे अनन्त सुख मिले चाहे न मिले पर आकुलता का संताप तो मत होवे ।
ॐॐ
६-२१६. किसी से कुछ नहीं चाहना ही सुख है और दूसरे से कोई आशा करना ही दुःख है ।
फॐ फ
७-२२६, केवल ज्ञान ही रहना सत्य सुख है, ज्ञानरूप परिणमन में खेद नहीं, यह तो ज्ञान की सहज वृत्ति है, रागद्व ेपादिरूप परिणमन में खेद है ।
ॐ क
८- २२२, जो निर्मोह और सर्वज्ञ हैं वही सर्वोत्कष्ट अनंत मुखी हैं ।
फॐ फ ६- २५२ तेरा सुख तुझ ही में है, और वह स्वाधीन है,