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उपादेय बुद्धि नहीं रहती, निज के आचार के चाहूय याचार है ।
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अर्थ ही
ॐ ॐ
२५-८३६. व्यवहार में दुखी को अनमना भी कहते हैं । अनमना का शुद्ध शब्द अन्यमनस्क है अर्थात् जिसका दूसरे में मन है उसे अनमना कहते हैं, यदि अनमना रहना बुरा समझते हो तो निजमना वन जावो, अन मनापन मिट जावेगा ।
ॐ ॐ
२६ - ८४४. अपने आचरण को सुसंस्कृत बनाने से ही भविष्य उज्ज्वल रहता है अतः अपने आत्मस्वभावरूप आचरण करो |
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फ्रॐ फ्र
२७- ८४०. अपने विचारों को पवित्र बनाये रखना निजस्व - भाव के लक्ष्य से च्युत न होना निजाचार है ।
ॐ