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[ ३० ] जाने पर भी आत्मा को क्या प्रतिष्ठा हुई ?
२३-६३२. यदि नाम के अक्षरों का यश चाहते हो तो
उन अक्षरों से आत्मा का कोई सम्बन्ध नहीं, न अक्षरों से आत्मा का परिचय मिलता है, उन लिखित अक्षरों से या बोले हुए अक्षरों से आत्मा को कोई शान्ति प्राप्त नहीं होती, आत्मा तो आत्मा है, अपनी करतूतों का फल पाता है उसकी करतूत भी अव्यक्त है ।
ॐ ॐ ॐ २४-६३६. हज़ारों मूहों की अपेक्षा एक ही ज्ञानी की दृष्टि में ख्याति होना बड़ी कीमत रखता है, अथवा किसी की दृष्टि में कुछ जचे इस से आत्मा की उन्नति नहीं, शान्ति नहीं, आत्मन् ! तुम्हारा काम केवल जानना है, से मात्र ज्ञाता रहो फिर सुख ही सुख है।
२५-८५३. न तो यश हित का सोधक है और न अपयश हित को बाधक है, हित का साधक तो इच्छा का अभाव है और हित का बाधक इच्छा का सद्भाव है।
ॐ ॐ ॐ -:*: