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8-१५६. हे प्रभो ! मैं तो आपको आत्मसमर्पण कर चुका,
अब भी यदि आपके ज्ञान में मेरी अशुद्धता का विकल्प (ग्राण) हो तो मेरा कोई अपराध नहीं; हे देव ! मुझ निमित्तक हुई एतावन्मोत्र आपकी अशुद्धता मिट जावे।
ॐ ॐ ॐ १०-३१४. हे भगवन ! परलोक में मुझे धनी होने की चाह
नहीं, धन असार और अहितरूप है। देव व भोगभूमिज मनुष्य होना नहीं चाहता वहां राग और मूर्छा के साधन प्रचुर हैं और असंयम का संताप है। तिर्यश्च भी होना नही चाहता, वहां उत्कृष्ट धर्म सामग्रय नहों अथवा कर्मभूमिज तिर्यश्च व मनुष्य की गति इस भव से सम्यक्त्व सहित मरण से मिलती नहीं, से मुझे सम्यक्त्व रहित अवस्था क्षण मात्र को भी इष्ट नहीं, तब मेरा क्या हाल होगा, हे नाथ ! तेरा ज्ञान प्रमाण व सहाय है ।
११-४५०. भगवान के गुणों में अनुराग करो व्यवहार के काम तुम्हें शान्ति न पहुंचायेंगे।
5 ॐ ॐ १२-४८८. हे परमात्मन् ! हे निर्दोप ! हे गुणाकर ! हे