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[ १२ ] उसका यथार्थ विचारो । यथार्थ ज्ञान होते ही मन लौट आवेगा तब स्वयं शुद्धात्मा व परमात्मा को भक्ति हो ही जावेगी।
卐 ॐ 卐 ५-४७. लोक कहते हैं कि भगवान् भक्त में बसता है
इसका यह अर्थ है कि भक्त अपने ज्ञान द्वारा अपने में भगवान् के स्वरूप को बसा लेता है।
६-७६. प्रभो ! कल्याण के लिये जो मेरा प्रयत्न है वह
आपकी भक्ति है और जो आपकी भक्ति है वह मेरा सावधि रत्नत्रय है, इसके अतिरिक्त वर्तमान में मेरे
और क्या करतूत हो सकती, परन्तु आपकी भक्ति के प्रसाद से आशा अत्यधिक है।
७-१४५. परमात्मध्यान में ध्यान का विषय परमात्मा है,
अतः परमात्मा मोह के नाश में निमित्त कारण है।
८-१४५. परमात्मभक्ति, परभिननिजात्मभक्ति, वस्तुस्वरूपावगम से मोह का विनाश होता है।
ॐ ॐ है.