Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 10
________________ "रसात्मकता काव्य का प्राण है। रसानुभूति के माध्यम से ही सामाजिकों को कर्तव्यअकर्तव्य का उपदेश हृदयंगम कराया जा सकता है। इसलिए कान्तासम्मित उपदेश को काव्य का प्रमुख प्रयोजन माना गया है। महाकवि वीर इस तथ्य से पूरी तरह अवगत थे। उन्होंने अपने काव्य में श्रृंगार से शान्त तक सभी रसों की मनोहारी व्यंजना की है।" "कवि वीर ने जम्बूसामिचरिउ में सशक्त, सटीक, स्वाभाविक एवं हृदयस्पर्शी अनुभावों का संयोजन कर पात्रों के रत्यादि भावों को अनुभूतिगम्य बनाने में अद्भुत कौशल का प्रदर्शन किया है। उनके द्वारा सामाजिक को पात्रों की रत्यादि परिणत-अवस्था का अविलम्ब बोध होता है। इसे उसका स्वकीय रत्यादि भाव तुरन्त उद्बुद्ध होकर उसे शृंगारादि रस से सराबोर कर देता है।" ___ "रस को व्यंजित करने की कला कवि के काव्य-कौशल की कसौटी है। रससिद्ध कवि वही माना जाता है जिसका रस-सामग्री-संयोजन अर्थात् विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भावों का विन्यास सटीक, स्वाभाविक एवं मनोवैज्ञानिक हो। इसके लिए कवि को विभावादि का सूक्ष्म अध्ययन आवश्यक है और आवश्यक है उचित पात्र में उचित स्थान तथा उचित समय पर इन्हें प्रयुक्त करने की सूझबूझ। वीर कवि में ये सभी गुण उपलब्ध होते हैं।" " 'संदेश-रासक' के रचना-कौशल से पता चलता है कि कवि प्राकृत-अपभ्रंश काव्य में निष्णात था, ऐसा उसके आत्म-निवेदन से भी प्रकट है। कृति के अध्येता को पदे-पदे यह विश्वास होता चलता है कि कवि को भारतीय साहित्य-परम्परा का पूर्ण ज्ञान है और उसमें भारतीय साहित्य के संस्कार पूरी मात्रा में विद्यमान थे। उसकी सांस्कृतिक प्रवृत्तियों में अभारतीयता का कहीं लेश भी नहीं मिलता। उसके भाव और विचार पूर्णतया भारतीयत्व से पगे हैं। अत: 'संदेशरासक' को किसी अहिन्दु कवि की रचना मानना उचित नहीं है।" 'संदेश-रासक' को एक मसलमान कवि की रचना न मानने से मेरा यह तात्पर्य नहीं है कि किसी मुसलमान कवि द्वारा भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में मंडित काव्य-रचना करने की प्रतिभा पर मैं शंका कर रहा हूँ। हिन्दी में अनेक मुसलमान कवियों ने भारतीय सांस्कृतिक परिवेश के आधार पर अनेक उच्चकोटि के काव्यसंग्रह रचकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है, किन्तु इसी के साथ यह भी उल्लेखनीय है कि उक्त कवियों ने अपना रच दिये हैं जिनसे यह पूर्णतया ज्ञात हो सका कि अमुक रचना का रचयिता इस्लाम धर्मावलम्बी था। 'संदेश-रासक' में ऐसे परिचय-संकेतों का अभाव है। अहहमाण ने जो अत्यन्त संक्षिप्त परिचय दिया है उससे यह सिद्ध नहीं होता कि वह मुसलमान था। पुष्ट प्रमाणाभाव ही इसमें कारक है। यदि भविष्य में ऐसे प्रमाण मिले और उनसे अद्दहमाण के मुसलमान होने की पुष्टि हो, तो फिर यह स्थिति शंकनीय नहीं है।" ___ "आत्मिक अभ्युत्थान और समाज के विकास में संयम की अहं भूमिका है । संयम के द्वारा ही समाज में सबका जीवन निरापद हो सकता है और संयम के द्वारा ही जीव शाश्वत सुखआत्मसुख को प्राप्त कर सकता है।" "सम्यक् प्रकार से अपने शुद्धस्वरूप में स्थिर होना ही संयम है। यह संयम दो प्रकार का है - इन्द्रिय संयम और प्राणिसंयम । इन्द्रिय-विषयों में अत्यधिक आसक्ति का न होना इन्द्रिय संयम है और पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति एवं त्रस - इन छ: काय के जीवों की रक्षा करना प्राणि-संयम है।"

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