Book Title: Anekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 17
________________ शान्तिनाथ पुरानका काव्यात्मक बंभव छन्न योजना-महाकाव्य की परम्परा के अनुरूप रेजे घनानृतरलीकृतचारुतारा दिग्नागनाथपदवी स्वयमागतेव।। काव्य में 'छन्द' का बहुत महत्व है। शान्तिनाथ पुराण में शा. पु. १६०२३१ इसी परम्परा का निर्वाह हुआ है। सम्पूर्ण ग्रन्थ 'अनुष्टुप' उपजाति:छन्द में निबद्ध है तथा प्रत्येक सर्ग के अन्त में छन्द परि- पुरःसरा धूपघटन्वहन्तो वैश्वानरा विश्वसृजो बिरेजुः । वईन है और वहां 'शार्दूल विक्रीडित' छन्द प्रयोग किया फणामणिस्फारमरीचिदीपैरदीपि मार्गः फणिनां गणेन ॥ गया है। यथा शा. पु. १६३२३३ अनुष्टुप् छम शान्तिनाथ पुराण का सूक्तिबंभवतत्प्रतापयशोराशी मूर्ताविवमनोरमौ। हमारा जीवन क्षेत्र विस्तीर्ण है । यहां विभिन्न विषयों धर्मचक्र पुरोधाय पुष्पदन्तावगच्छताम् ।। शा.पु. १६२३२ के मधुर तथा कटु अनुभव प्राप्त होते रहते हैं। सूक्तियाँ शार्दूल विक्रीडितम् वाणी का रत्न है, जो गम्भीर अनुभवों को व्यक्त करती गीर्वाणवरिवस्यया गिरिवरः प्राये स शक्रादिभि । है, इसके द्वारा धर्म सिद्धान्तों तथा नैतिक मूल्यों का महत्त्व Vतो तत्मणरम्यता क्षणरुचेः संप्राप्तवत्यां विभो ॥ प्रकट होता है। लोक में काव्य की प्रकृष्टता उसकी तीखी अग्नीन्द्रा मुकुटप्रभानलशिखाज्याला रुणाम्भोरुहे और मार्मिक सूक्तियो के द्वारा सिद्ध होती है। रान, विरचय्यतत्प्रतिनिधि सत्सम्पदा सिद्धये ॥ १६॥२४० सूक्ति का सामान्य अर्थ है-सु-उक्ति-सुन्दर या शान्तिनाथ पुराण में अन्य प्रयुक्त छंद निम्नलिखित है सौष्ठव पूर्ण कथन । सामान्य लोकवाणी से विचित्र प्रभावउत्पलमालभारिणी कारी विशेष कथन को ही आरम्भ में सूक्ति कहा गया स्तवकमयमुन्मयूखमुक्तास्तबकित मध्यमनेकभक्तियुक्तम् । होगा, लेकिन इस 'सूक्ति' शब्द का बोध आगे चलकर सुरतमणिदण्डिक तदन्तनिरुपममाविरभूत्परं वितानम् ॥ कवि वाणी के पर्याय मे होने लगा। शा. पु. १६।२२७ महाकवि राजशेखर ने सरस्वती को 'सूक्ति धेनु' प्रहर्षिणी कहा है-"कि कवियो की सरस्वती सूक्तिधेनु है, कवि तस्यान्तस्त्रिभुवनभूतये जिनेन्द्रो याति स्म जन सरस्वती रूपी माय से सूक्ति दुहा करते हैं। सूक्ति प्रतिपदमेत्य नम्पमानः । अर्थात् काव्य। संभ्रान्तः करधृतमगलाभिरामैर्देवेन्द्रदिविभु यह 'सूक्ति' शब्द मात्र ही काव्य की पहली परिभाषा विभूमिपैश्च भक्त्या ।। शा. पु. १६०र२८ है। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त (१२०-३७८०) काव्य एवं इन्द्रवंशा सगीत विद्या में रुचि रखने वाला था। प्रयाग के अभिलेख तपोधनाः शिथिलितकर्मबन्धना महोदया सुरनतधीमहोदयाः। मे प्रशसा पूर्वक उसे सूक्तमार्ग (सक्ति काव्य की रचना तमन्वयुविधुमिव शान्तविग्रहा ग्रहाः शुभाः करने वाला) कवि कहा गया हैशुभरुचयस्तमोपहम् ॥ शा पु. १६।२२९ "सूक्त मार्ग की जिसकी सुभाषित रचनाए पठनीय बियोगिनी हैं और जिसका काव्य भी अपनी अच्छी सूक्तियों के कारण ननृते जयकेतुभिः पुरः परितज्येव विवादिनः परान् । अन्य कवियों के कल्पना विभव को उखाड़ देने वाला है। यशसः प्रकररिवेशितुः शरदिन्दुद्युतिकान्तकान्तिभिः । कौन सा गुण है, जो उसमें नही है । एक मात्र वही विद्वानों शा. पु. १६४२३० का आदर स्थान है। बसन्ततिलका-- अन्यत्र स्थान पर सूक्ति को "कान से पिया जाने उत्यापिता सुरवरैः पथि वैजयन्ती वाला अमृत" बताया गया है। मुक्ताफलप्रकरभिन्नदुकूलक्लुप्ता । काव्य में सूक्तियों का कर्णामृत रस काव्यरस से भिन्न

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