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प्रथम प्राणा विज्ञान (Zoology) विशेषज्ञ जैन कवि हंसदेव
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भारतवर्ष अपनी वैज्ञानिक प्रतिमा एवं ज्ञान के लिए विश्व विख्यात रहा है। भारत में विज्ञान की विभिन्न शाखायें जैसे गणित ज्योतिष, शल्य चिकित्सा, औषधि स्थापत्य, आयुर्वेद, प्राणिविज्ञान, रसायनविज्ञान, खगोल विद्या, आदि आदि क्षेत्रों में सबसे अग्रणी माना जाता था। अपनी उत्कृष्टता के कारण विश्व के विभिन्न देशो मे इसे बड़ा गौरव एवं सम्मान प्राप्त था। विश्व के विभिन्न देशों ने भारत से उपर्युक्त क्षेत्रों में बहुत कुछ सीखा और समझा एवं भारत को आदर दिया ।
यूनान - सम्राट विश्वविजेता सिकन्दर जब भारत से वापिस यूनान लौटा तो अपने साथ अनेकों भारतीय विद्वानो को एवं भारतीय ग्रंथरत्नों को सम्मान के साथ लेगया । था, उसने उन विद्वानों द्वारा उन श्रेष्ठग्रन्थों का अध्ययन मनन, चिन्तन एवं अनुदूत कराकर यूनानी सभ्यता एव साहित्य को विकसित एवं सुसस्कृत कराया था। यूनान ने भारत में बहुत कुछ सीखा था पर हम अपने सकुचित दृष्टिकोणो के कारण कालान्तर में अपनी वैज्ञानिक उपलब्धि को भुला बैठे तथा मरो की तुलना मे पिछड गये ।
उबर यूरोप में ज्ञान की पिसा तीव्रता से जाग्रत हो रही थी और वे लोग हमारे ग्रन्थों को लेकर उन पर ध खोज कर आगे बढ़ने लग और विज्ञान के क्षेत्र मे अपनी श्रेष्ठता का दावा जताने लगे और अपनी मौलिकता का दिवो पीटने लगे। यहां विज्ञान के क्षेत्र की चर्चा करते हुए केवल प्राणि विज्ञान ( Zoology) के क्षेत्र में ही मक्षिप्त सी चर्चा करना चाहता हू ।
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यूरोपीय विद्वानो का दावा है कि Zoology के क्षेत्र मे अठारहवी सदी से ही उन्हीनेोधखोजकर विज्ञान की इस शाखा को समृद्ध एवं विकसित किया है और इन्ही विद्वानों को आधार मानकर भारत के आधुनिक
1. कुन्दनलाल जैन प्रिन्सिपल
प्राणिविज्ञान ऐसा डा० सलीम अली ने इस क्षेत्र में बड़ा विशाल कार्य किया है और वे नेशनल प्रोफेसर की ख्याति से विख्यात है पर वह बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि जो कान डा० सलीम अली ने अब किया है या यूरोपीय विद्वान वडे गर्व के साथ जिस पर अपना दावा पेश करते हैं उमी विख्यात विशालकार्य को अब से लगभग साढ़े सात सौ वर्ष पूर्व लगभग सं० १३०० में भारत के विख्यात जैन कवि श्री हंसदेव जी ने "मृग पक्षी शास्त्र" नामक एक विशाल ग्रन्थ लिखकर आधुनिक वैज्ञानिकों का मार्ग प्रशस्त किया था ।
"मृग पक्षी शास्त्र " संस्कृत पद्यों में रचा गया है यह दो भागो मे विभाजित है। प्रथम भाग में चतुष्पदों का तथा द्वितीय भाग में पक्षियों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसमें संस्कृत के १७१२ कुल छंद विद्यमान हैं। इसके रचयिता श्री पं० हंसदेवजी ने अपना विस्तृत परिचय नही दिया है। विभिन्न उद्धरणो से केवल इतना ही पता चलता है कि प० हसदेव जी जिनपुर के शासक महाराज जौण्डदेव के राज्याधित कवि थे तथा प्रकृति विज्ञान एवं प्राणी विज्ञान के प्रकाण्ड पडित एवं ज्ञाता थे ।
आश्चर्य तो इम बात का है कि आज से साढ़े सात सौ वर्ष पूर्व उम युग में जब कि वैज्ञानिक साधनो का आज की तुलना सर्वथा ही अभान था तथा जाँच पड़ताल एव परखने और शोध खोज की सुविधाए सर्वथा सीमित थी, ऐसी अभाव की परिस्थितियों में एक जैन कवि, जिसे सभी जैन परम्पराओं का निर्वाह भी करना पड़ता होगा, कैसे इतना गम्भीर चिन्तन मनन एवं शोध खोज पूर्ण अध्ययन कर " मृग पक्षी शास्त्र" जैसे विख्यात प्रामाणिक विशाल ग्रंथ की रचना कर सका। और भावी पीढ़ी के लिए एक अनूठी विरासत छोड़ सका। अपने आपमें यह एक अद्भुत आश्चर्य शात होता है।