Book Title: Anekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 123
________________ १२,३७,०४ मनेकान्त इस कथा का उद्गम बताते हुए अन्त मे प्रत्यकार ने लिखा है कि - यह कथा भ्राजिष्णु की आराधना कर्णाटक टीका में वर्णित क्रम के अनुसार उल्लेख मात्र से कही गई है । (भ्राजिष्णु का अर्थ हरि होता है अतः इससे कथाकार हरिषेण का संकेत हो ।) (६) श्रेणिक चरित्र (भट्टारक शुभ चन्द्र कृत) हिन्दी अनुवाद में लिखा है : पृष्ठ १६ - कुमार थेणिक deer वस्त्रधारी बौद्ध संन्यासियों के सच मे गये उनके धर्म में आशक्त हो गये। यशोधर महामुनि पर उपसर्ग किया फिर भी मुनि ने उन्हें आशीर्वाद दिया तो वे जैन धर्म में श्रद्धालु हो गये । पृष्ठ २३९ गौतम गणधर से पवित्र पुराण सुन तीनों सम्यक्त्व धारण कर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया । पृष्ठ २५७ — गलती महसूस कर कुणिक ने श्रेणिक को काठ के पिंजरे में बन्द करा दिया। पृष्ठ २६१-- फिर अपनी गलती महसूस कर कुणिक अपने पिता श्रेणिक को बन्धन मुक्त करने चला उसे आता देख श्रोणिक ने विचारा - यह दुष्ट मुझे और क्या-क्या दुख देगा - प्राण देकर ही उससे छूट सकता हूं इस प्रकार दुखी होकर अपना शिर मारकर आत्महत्या कर ली। यह देख कुणिक बेलना हाहाकार करने लगे । कुणिक ने मरण संस्कार किया और ब्राह्मणों को खूब दान दिया । (७) "भगवान् महावीर" (बाबू कामता प्रसार जी कृ वीर सं० २४५० ) : हिन्दी ग्रन्थ में भी थेजिक परिन के अनुसार कथन किया है किन्तु २० वर्ष बाद इसी ग्रन्थ को संशोधित रूप से प्रस्तुत किया तो भी कामताप्रसाद जी "कुणिक का अपने पिता को बन्धन मुक्त करने जाना और क्षेणिक का आत्महत्या करना" आदि कथन कतई नहीं दिया है। श्री दिगम्बरदास जी मुख्तार ने भी "वर्धमान महावीर " पुस्तक में यह कथन नही दिया है। (८) "जैनेन्द्र सिद्धांत कोश' भाग ४ पृष्ठ ७१ : श्रेणिक --मगध का राजा था, उज्जैनी राजधानी थी । यह पहिले बौद्ध था पीछे अपनी रानी चेलनी के समझाने से जैन हो गया था। वीर का प्रथम भक्त बना । इसने तीर्थकर प्रकृति का बन्ध किया। इसके जीवन का अन्तिम भाग बड़े दुख से बीता। इसके पुत्र ने इसे बन्दी बना लिया उसके भय से ही इसने आत्महत्या कर ली थी जिससे यह प्रथम नरक गया । (९) भारतीय इतिहास एक दृष्टि (डा० ज्योति प्रसाद जी जैन): 1 पृष्ठ ६३ : श्रेणिक के पिता का नाम हिन्दु पुराणों में शिशुनाग और बौद्ध साहित्य में भट्टि तथा जैन अनुभूति में उपश्रेणिक मिलता है कि को उसके पिता ने निवसित कर दिया वह जैनेतर साधुओं का भक्त बन गया और जैन धर्म से द्वेष करने लगा। कुछ जनश्रुतियों के अनुनार वह बौद्ध हो गया किन्तु यह बात असंभव सी प्रतीत होती है क्योंकि महावीर के केवल ज्ञान प्राप्त ( ईस्वी पूर्व ५५७ ) के पहले ही वह फिर से जैन धर्म का अनुयायी बन चुका था और उस समय किसी भी मतानुसार बुद्ध ने अपने धर्म का प्रचार प्रारम्भ नहीं किया था। ई० ५८० के लगभग अणिक मगध के सिहासन पर बैठा था । ५२ वर्ष राज्य किया फिर ई० पू० ५३५ में श्रेणिक की मृत्यु हुई । पृष्ठ ६५ : श्रेणिक ने कुणिक को राजपाट सौंप दिया कुणिक ने बौद्ध धर्मी देवदत्त के बहकाने से थे कि को बंदीगृह में डाल दिया। चेतना से संबुद्ध हो वह कि बन्धनमुक्त करने चला तो श्रेणिक ने समझा कि वह उसे मारने आ रहा है, दीवारो से सिर फोड़कर श्रेणिक ने आत्म हत्या कर ली । (१०) 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास' (श्वे० आ० हस्तिमल जी कृत मन् १९७१) - पृष्ठ ५१५-१७ : वीर निर्वाण से १७ वर्ष कुणिक मे अपने १० माइयों को मिला महाराज अणिक को कारागृह मे डाल दिया । चेतना के गर्भ में जब कुणिक था तब उसे दोहद हुआ कि मैं श्रेणिक के कलेजे का मांस खाऊं । चेलना ने गर्भस्थ शिशु को गिराने का प्रयत्न किया किन्तु गिरा नहीं । जन्म के पश्चात् उसे कचरे की ढेरी पर डलवा दिया मुर्गे ने उसकी अंगुली को काट खाया इससे वह पक गई। पुत्र मोह से थे कि ने उसे ढूंढकर मंगवा लिया और खुद उसकी अंगुली चूस कर उसे ठीक किया।

Loading...

Page Navigation
1 ... 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146