Book Title: Anekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 145
________________ वीर सेवा मन्दिर की वर्तमान कार्यकारिणी १. साहू श्री अशोक कुमार जैन १. न्यायमूर्ति श्री मांगीलाल जैन अध्यक्ष उपाध्यक्ष उपाध्यक्ष महासचिव सचिव १, सरदार पटेल मार्ग, नई दिल्ली ३०, तुगलक कीसेन्ट, तुगलक रोड, नई दिल्ली ३, रामनगर (पहाड़गंज) नई दिल्ली १६ दरियागंज, नई दिल्ली-२ ३, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली २/१०, अंसारी रोड, दरियागंज नई दिल्ली ७/३५, दरियागंज, नई दिल्ली ४, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली २३, दरियागंज, नई दिल्ली बी-४५/४७, कनाट प्लेस, नई दिल्ली १, अंसारी रोड, नई दिल्ली अजित भवन, २१-ए, दरियागज, नई दिल्ली ३. श्री गोकुल प्रसाद जैन ४. श्री सुभाष जैन ५. श्री चक्रेशकुमार जैन श्री बाबूलाल जैन ७. श्री नन्हेंमल जैन ८. श्री इन्दरसेन जैन ६. श्री ओमप्रकाश जैन १०. श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन ११. श्री भारतभूषण जैन १२. श्री विमल प्रसाद जैन १३. श्री अजित प्रसाद जैन १४. श्री अनिल कुमार जैन १५. श्री रत्नत्रयधारी जैन १६. श्री दिग्दर्शन चरण जैन १७. श्री मल्लिनाथ जैन १८. श्री मदनलाल जैन कोषाध्यक्ष सदस्य २७७० कुतुब रोड, सदर, दिल्ली ५, अल्का जनपथ लेन, नई दिल्ली ज्ञान प्रकाशन, २१ दरियागंज, नई दिल्ली १, दरियागंज, नई दिल्ली सी ६-५८, डवलपमेंट एरिया सफदरजंग, नई दिल्ली ७/२३, दरियागंज, नई दिल्ली ४६४१-ए/२४ दरियागंज, नई दिल्ली प्लाट नं० ४, भोगावीर कालोनी लंका, वाराणसी १६. श्री दरयाव सिंह जैन २०. श्री नरेन्द्र कुमार जैन २१. डा० दरबारी लाल कोठिया नोट-क्रमांक १५ का दि० २२-१०-८४ को स्वर्गवास हो गया। [आवरण दो का शेष] यदि प्रचार की प्रक्रिया को सफल बनाना है तो धनिकवर्ग को भी यश-लिप्सा और पद-लोलुपता से विरक्त होना होगा और ऐसे विद्वानों को तैयार करने में धन लगाना होगा जो मन वचन-काय सभी भांति से धर्म की मूर्ति हों-जिनके आचार-विचार सभी में जिनवाणी मूर्त हो और जिन्हें अर्थ के लिए परमुखापेक्षी म होना पड़े। जब तक धन के ऊपर ज्ञानका प्रभुत्व था तब तक धर्म की बढ़वारी रही और जिस दिन से ज्ञान के ऊपर धन का प्रभुत्व हुला; धर्म पंगु होता चला गया। अत:-बन्धुवर, आवश्यकता इस बात की है कि समाज मे सच्चे विद्वान, त्यागी और निःस्पृही तत्त्वों को बढ़ाया जाय, उन्हें प्रश्रय दिया जाय और उनसे मार्ग दर्शन लिया जाय । विद्वानों का भी कर्तव्य है कि वे अपने आचार में दृढ़ रह जिनवाणी की उपासना के श्रम को सार्थक करें और धर्म की बढ़वारी करें चाहे सर्वस्व अर्पण ही क्यों न करना पड़े। आशा है, हमारी और समाज की दिशा बदलेगी और सभी इसी भांति वह सबबुछ पा सकेंगे जिसकी उन्हें चाह है। इससे यश चाहने वालों को अट्ट यश मिल सकेगा और स्व तथा पर सभी को सुख और शान्ति भी। --सम्पादक

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