Book Title: Anekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 131
________________ एक महत्वपूर्ण अप्रकाशित अपभ्रंश रचनाः अमरसेन चरिउ : डा. कस्तूरचन्द्र "सुमन" राजस्थान प्राचीन काल में धार्मिक एव साहित्यिक अपूर्ण होते हुए भी कथा मे कोई व्यवधान नही आता है। गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध रहा है। इस प्रान्त मे यह ग्रन्थ मात सन्धियो मे समाप्त हुआ है। अन्त में हस्तलिखित ग्रन्थो के अनेक भण्डार है, जिनमे अनेक प्रशस्ति के रूप में लिपिकार का परिचय भी है। ग्रन्थ की महत्वपूर्ण कृतियां प्रकाशन की वाट जोह रही है। आमेर- प्रथम संधि में बावीम कडवक और तीन सौ छयत्तर यमक शास्त्र भण्डार उनमे एक है। है। इसी प्रकार दूसरी सन्धि मे तेरह कड़वक और दो सौ ___इस शास्त्र भण्डार मे लगभग ३७०० हस्तलिखित ग्यारह यमक तीसरी मे तेरह कडवक और एक सौ सतत्तर ग्रन्थ हैं । सस्कृत, प्राकृत और अपभ्र श भाषा मे लिखे यमक, चौथी नन्धि मे तेरह कडवक और दो सौ पचास गये हैं। समाजोपयोगी है। उनसे समाज परिचित हो इस यमक, पांचवी मन्धि मे चौबीय कड़वक और तीन सौ सन्दर्भ मे यह इस प्रकार का प्रथम प्रयास है । सतासी यमक, छठी मन्धि में चौदह कडवक और एक सौ अपभ्रंश भाषा में लिखा गया अमरसेनचरिउ इस सेंतालिम यमक, तथा सातवी सन्धि में पन्द्रह कडवक और शास्त्र भण्डार का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। कवि माणि- एक मो पचान्नवे यमक है । इस प्रकार ग्रन्थ में कुल सात क्कराज इस काव्य के रचयिता थे। सोलहवी शताब्दी सधियां और सधियो मे एक सौ १४ कडवक तथा कड़वकों की इस रचना मे जैन सिद्धान्तो को कथाओं के माध्यम मे एक हजार सात सौ तेतालीस यमक हैं। सन्धियों के से समझाया गया है । रोचक है। साथ ही कल्याण का आरम्भ ध्र वक छन्द से और अन्त घत्ता से हुए हैं । कड़वक हेतु भी भी। के अन्त में घत्ता छन्द व्यवहृत हुआ है। इस कृति का प्रथम परिचय देने का श्रेय जैन विद्या- कवि स्वयम्भू के अनुसार यमक दो पदों से निर्मित सस्थान, श्री महावीर जी के अधीनस्थ आमेरशास्त्र भंडार छन्द है। और कड़वक आठ यमको का समह । उन्होंने यह को प्राप्त है। अब तक किसी अन्य भण्डार से यह उपलब्ध भी कहा है कि यदि पदो मे सोलह मात्राएं हों तो वह नही हुआ है, यदि किसी भण्डार को इस कृति के होने का पद्धड़िया छन्द हैं। पत्ता छन्द मे प्रथम और तृतीय पाद गौरव प्राप्त हो तो कृपया लेखक को सूचित कर अनुग्रहीत मे नौ मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ पाद मे चौदह करें। मात्राएं होती है । इस छन्द मे बारह-बारह मात्राएं तथा इस पाण्डुलिपि के ६६ पत्र हैं । सम्पूर्ण पत्र ११ सेंटी- कभी-कभी सोलह-सोलह मात्राएँ और प्रथम एवं द्वितीय मीटर लम्बा और ४ सेंटीमीटर चौड़ा है। पत्र के चारो पाद के आदि मे गुरु वर्ण भी मिलता है।' और हाँसिया छोड़ा गया है। बायी ओर का हासिया एक प्रस्तुत कृति में यमक सोलह मात्राओं से निर्मित सेंटीमीटर है और दायी ओर का एक सेंटीमीटर से कम। दिखाई देते हैं । अतः उक्त पद्धड़िया छन्द की परिभाषा ऊपर नीचे भी लगभग आधा-आधा सेंटीमीटर रिक्त स्थान के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि इस रचना मे है। लम्बाई की दोनों ओर पत्र हाँसिये रूप में रेखाकित पद्धड़िया छन्द का व्यवहार हुआ है। कड़वकों में निर्धारित है। रेखांकित अशो के मध्य प्रत्येक पत्र पर पंक्तियां है, यमक सख्या का उल्लंघन किया गया है। पाठ से चौबीस और प्रत्येक पक्ति मे लगभग ३०-३५ अक्षर । पत्र दोनो यमक तक एक कड़वक में मिलते हैं। यह तथ्य उल्लेखनीय मोर लिखे गये है। रचना अपूर्ण हैं। प्रथम पत्र नहीं है। है कि कड़वक की निर्धारित न्यून सख्या का किसी भी

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