Book Title: Anekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 77
________________ अपन प्राणी विशाल (Zoolosy) विशेषतान विसदेच यह ग्रन्थ सर्वषा अनुपलब्ध है, मैं बहुत प्रयास कर में उपलब्ध होते हैं पर सर्वाग पूर्ण रचना यह अपने बाप चुका हूं कि कही से उसकी पान्डुलिपि अथवा प्रकाशित् में एक ही है। केवल हाथियों के बारे में विस्तृत विवेचन प्रति उपलब्ध हो जाये पर सर्वथा निराश रहा, कृपालु करने वाली दो विस्तृत कृतियां उपलब्ध होती है एक है पाठकों से विनम्र विवेदन है किसी को यह ग्रन्थ मिल सके श्री पालकाय्यकृत 'हस्ति आयुर्वेदिक' तथा दूसरी है श्री या इसके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध हो सके तो नीलकण्ठकृत "मातङ्गलीला।" ये दोनों ही कृतियां बड़ी कृपया मुझे सूचित करें, मैं तो बड़े-बड़े विश्वविद्यालयो के प्रामाणिक विस्तृत एवं विख्यात हैं इनमें सिर्फ हाथियों के Zoology Depatts के प्रोफेसरों से भी सपर्क साध चुका बारे में ही विस्तार से चर्चा एवं विशद विवेचन किया हूं पर सर्वथा निराश रहा। गया है। घोड़ों की विशेषताओं का विशद विश्लेषण करने श्री डा. वेलंकर ने अपने "जिनरत्नकोश" में वाला एक विशाल ग्रंथ 'अश्व वैद्यकम्' श्री जयदेव ने रचा इसका उल्लेख करते हुए पेलेस लाइब्रेरी त्रिवेन्द्रम में इसकी था। कुमाऊं के महाराजा श्री रुद्रदेव ने बाज पक्षी की पाण्डुलिपि होने की सम्भावना व्यक्त की है पर वहां से प्रामाणिक जानकारी अपने ग्रंथ "येनिक शास्त्र" में पत्र व्यवहार में भी मुझे सफलता नहीं मिली। डा.बेलकर विस्तार से दी है ? इस तरह यूरोपीय विद्वानों का यह ने लिखा है .-"मृग पक्षी शास्त्र" of Sh. Hansdeva दावा है कि प्राणी विज्ञान का आविष्कार अठारहवीं a protege of kings shoundadava . It is in two शताब्दी में उनके द्वारा हुआ सर्वथा निराधार सिद्ध होता parts containing total work of 1712 stanzas है। यूरोपीय विद्वानों से पूर्व ही भारतीय विद्वान इस क्षेत्र It is a rare work an zoology and a Mrs. of में पर्याप्त और प्रामाणिक एवं विशाल साहित्य की रचना it is presented in the palace library of Tri- कर चुके थे। vendrum . The auther is said to have lived in भारतवर्ष राजा महाराजाओं का देश था अतः हर the 13th centerry " राज घराने में प्रत्येक राजा तथा राजकुमार आखेट उपर्युक्त ग्रन्थ की सर्वप्रथम जानकारी मद्रास के क्रीडा में निपुण एवं निष्णात हुआ करते थे । आखेट उनका एपिग्राफिस्ट श्री विजय राघवाचार्य को प्राप्त हुई थी। व्यसन एव ज्ञान-वृद्धि का साधन हुआ करता था, इसे एक इसकी प्रतिलिपि अमेरिका के प्रसिद्ध विद्वान श्री के. उच्च स्तर का खेल एव मनोविनोद तथा मनोरंजन का सी० बुड अमेरिका लेगये थे। जब जर्मनी के प्रसिद्ध साधन माना जाता था । अतः राजाओं एवं राजकुमारों विद्वान श्री आटोमेडर को इस महत्वपुर्ण कृति का पता तथा उनके सहयोगियो का प्रकृतिविज्ञान एवं प्राणी चला तो वे इसका अग्रेजो और जर्मनी मे अनुवाद करना विज्ञान के क्षेत्र दक्षता एव नैपुण्य और कोशल प्राप्त कर चाहते थे, पर वे प्रयम विश्वयुद्ध के दौरान गन् १९१४ लेना कोई आश्चर्य या विस्मय की बात न थी। यह तो में नजरबन्द कर लिए गये थे और दुर्भाग्यवश यह पुनीत भारतीय दासता थी जो अभिशाप बनी और उसने कार्य तब रुक गया, सन् १९२५ मे ग्रन्ध गर्वप्रथम देव- हमारे ज्ञान, कौशल, हस्त शिल्प नैपुण्य, दक्षता, वैज्ञानिक नागरी में प्रकाशित हुआ तथा सुन्दराचार्य ने इसका अग्रेजी प्रतिभा आदि सभी गुणो का ह्रास करा दिया और विदेशी अनुवाद किया जो सन् १९२७ में प्रकाशित हुआ, पर कहां लोग हमारी विशेषताओं को लेकर स्वय साधन सम्पन्न से? प्रकाशित कराया वह जानकारी उपलब्ध नही होती बनकर अपना प्रभुत्व एवं वर्चस्व दिखाने लगे । अस्तु"" है संभवत. "इन साइक्लोपीडिया ब्रिटानिया" में कुछ "मग पक्षी णास्त्र" जैसा महत्वपूर्ण ग्रंथ कैसे रचा जानकारी प्राप्त हो सके। गया। इसकी अपनी ऐतिहासिक गाथा है, वह इस प्रकार ___ इस तरह के प्रयों की श्रेणी में "गवायुर्वेद," गज- है कि जिनपुर के महाराज श्री शौण्डदेव एक बार आवेट चिकित्सा अश्वचिकित्सा आदि प्रकरण आयुर्वेदिक ग्रंथो क्रीड़ा के लिए वन में गये और ढोल नगाड़े बजवाकर

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