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पट्ट महादेवी शान्तला
"आपकी यह बिटिया 'जगती- मानिनी बनकर बिरा जेगी अर्थात् वह सारे विश्व में गरिमायुक्त गौरव से पूजी जाने वाली मानवदेवता की स्थिति प्राप्त कर लेगी। अपने जीतेजी ही जन-जन के स्नेह, श्रद्धा एवं भक्ति की पात्री बनकर एक देवी की भांति पूजित होगी और यह सब अपने सद्व्यवहार, सद्गुणों तथा अप्रतिम व्यक्तित्व के बल पर ही ।"
'जगती- मानिनी' बनने का उपरोक्त उद्गार, भविष्यवाणी, पूर्वाभास अथवा शुभाकांक्षारूप आशीर्वाद, अबसे लगभग नौ-सौ वर्ष पूर्व एक आठ-नौ वर्ष की नन्हीं बालिका के विषय में उसके शिक्षक ने उसके पिता के समक्ष व्यक्त किया था । स्थान था दक्षिण भारत के मुकुटमणि कर्नाटक देश का बलिपुर (वर्तमान बेलगांव ) । बालिका के पिता थे उस नगर एवं सम्बन्धित प्रदेश के हेगड़े या (पेग्गड ) पदधारी स्थानीय प्रशासक एवं ग्राम प्रमुख बलिपुर द्वार-समुद्र होयसल राज्य का एक 'महत्वपूर्ण सीमात जनपद एव प्रशासकीय इकाई था । हेगड़े का नाम मारसिंगध्य था । जो कुशल प्रशासक, वीर योद्धा और स्वामीभक्त राज्य कर्मचारी थे--- होयसल नरेश विनयादित्य द्वितीय (१०६०-११००, के और विशेषकर उनके सुपुत्र तथा राज्य के वास्तविक कार्यसंचालक पोयसलवंशत्रिभुवनमल्ल युवराज एरेयग महाप्रभु के वह अत्यन्त विश्वासपात्र थे । हेग्गड़ की धर्मपत्नी मानिकब्बे दडनाथ नाग वर्मा की पौत्री, दण्डनायक बलनेव की पुत्री और पेगडे सिगमय्य की भगिनी थी। वीर सेनानियों के प्रसिद्ध कुल मे उपन्न यह महिला अपने पितृकुल की प्रवृत्ति के अनुसार परम जिन भक्त थी, जबकि उसके पति हेगडे मारलिंगय परम शैव थे । परन्तु धर्मवैभिन्य के कारण उन पति-पत्नी के बीच असमाधान की स्थिति कभी नहीं आई दोनों का दाम्पत्य जीवन सुख-शान्ति, प्रेम और सद्भाव
डा० ज्योतिप्रसाद जैन 'इतिहास मनोषी'
पूर्वक व्यतीत हो रहा था । और इन महाभाग दम्पति की एक मात्र सन्तान, उनकी लाड़ली बेटी (शान्तले) मान्तला देवी या शान्तल देवी थी, जिसे लक्ष्य करके उसके शिक्षक, विविध विषय- निष्णात श्रेष्ठ विद्वान कविवर पण्डित बोकिमय्य ने वह शुभकामना व्यक्त की थी। वह स्वयं श्रवणबेलगोल के तत्कालीन भट्टारक पण्डिताचार्य heronifi के गृहस्थ शिष्य थे। एक साधारण हेगडे की पुत्री यह अद्भुत लड़की प्रायः यौवनारम्भ में ही युवराज एरेयंग महाप्रभु एवं युवराशी एचल देवी के द्वितीय पुत्र राजकुमार बिट्टिदेव की प्राणवल्लभा हुई और होयसल वंश के सर्वाधिक प्रतापी, शक्तिशाली एवं प्रख्यात नरेश बिट्टि - वर्द्धन अपरनाम विष्णुवर्द्धनिदेव (११०६-११४८) के रूप में उसके राज्यकाल में उसकी प्रिय पट्ट महादेवी अपने शेष पूरे जीवनकाल में बनी रही। वह उस होयसल चक्रवर्ती की सफलताओं, तेज प्रताप का प्रधान प्रेरणास्रोत एवं सक्रिय सहयोगिनी रही- वह उसकी सरस्वती, लक्ष्मी और शक्ति तीनों ही थी। साथ ही, राज्य की ही समस्त प्रजा नहीं, बास-पास भी दूर-दूर तक जिसके बुद्धि-वैषम्य, विक्षता एवं अप्रतिम निष्कल्मष सद्व्यवहार से छोटे-बड़ े सभी जन अभिभूत रहे ।
प्रबुद्ध होने का दावा करने वाला आज का मानव तर्कशील एवं शंकालु होता है । इतिहासातीत व्यक्तियों एवं घटनाओं को सो वह प्रायः पौराणिक, मिथिक या कपोलकल्पित गप्प कहकर नकार देता है । वह यह भूल जाता है कि सारा इतिहास दूर अतीत का अंश बनकर पुराण हो जाता है, और प्राचीन ऐतिहासिक स्थल भी कालान्तर में तीर्थस्थानों का रूप ग्रहण कर लेते हैं । इतना ही नहीं, गत बढ़ाई-तीन हजार वर्षों से संबंधित शुद्ध इतिहासकालीन व्यक्ति एवं घटनाओं को भी, उनके इतिहास सिद्ध होते हुए भी, वह यथावत स्वीकार करने